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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 45 मानवीय अभिरुचियों से पूर्ण दार्शनिक निरपेक्षता (तटस्थता) कभी भी इस जीवन में सम्भव नहीं है, क्योंकि दार्शनिक को भी इसी मूर्त ऐन्द्रिक जगत् में जीवन जीना होता है। प्लेटो ने सुकरात के ज्ञान और सद्गुण के तादात्म्य को स्वीकार किया है। जिसे शुभ की निरपेक्ष सत्ता का बोध है, केवल वही व्यक्ति मानव जीवन में सिद्धि के योग्य अपूर्ण एवं अस्थायी शुभों का अनुसरण कर सकता है। यह असंभव है कि व्यक्ति को शुभ का यथार्थ ज्ञान होते हुए भी वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में वह उनका आचरण नहीं करे । शुभ का सच्चा ज्ञान होने पर जब भी व्यक्ति के सम्मुख बौद्धिक चयन के हेतु कोई विकल्प प्रस्तुत होगा, तो वह अनिवार्यतया एक अच्छा व्यावहारिक व्यक्ति भी होगा। वह मनुष्यों में लोकप्रिय और देवताओं के स्नेह का पात्र होगा। साथ ही यदि समाज उसे अपनी राजनीतिक योग्यता को अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करेगा, तो वह एक अच्छा राजनेता भी सिद्ध होगा। प्लेटो का सद्गुण संबंधी सिद्धांत प्लेटो के दर्शन में व्यावहारिक शुभ के सामान्य लक्षणों का निर्धारण उसके विश्व संबंधी दृष्टिकोण के आधार पर होता है। यह माना जाता है कि मनुष्य की आत्मा को अपनी सामान्य एवं शुभ अवस्था में बुद्धि के द्वारा अनुशासित एवं संगति पूर्ण होना चाहिए। यहां प्रश्न यह उठता है कि यह अनुशासन की शक्ति एवं संगति साररूप से किस तत्त्व में निहित है? किंतु इस प्रश्न के प्लेटो के द्वारा दिए गए उत्तर की विवेचना करने के पूर्व यह जान लेना उचित होगा कि वे सुकरात के इस सिद्धांत को स्वीकार करते है कि सर्वोत्तम सद्गुण शुभ के ज्ञान से अवियोज्य है, किंतु जैसे-जैसे इस संबंध में प्लेटो का ज्ञान अधिक गहन और व्यापक होता गया, वे यह मानने लगे कि जो व्यक्ति दार्शनिक नहीं हैं, उनमें भी अपेक्षाकृत निम्नकोटि के सद्गुण होते हैं। यह स्पष्ट है कि यदि जिस शुभ को हमें जानना है, वह सभी वस्तुओं का अंतिम आधार है, तो उस शुभ के ज्ञान में दूसरे सभी ज्ञान भी निहित होंगे, किंतु इस शुभ का ज्ञान कुछ विशिष्ट एवं सुप्रशिक्षित व्यक्ति ही प्राप्त कर सकेंगे, लेकिन हम सभी सद्गुणों को केवल इन सुप्रशिक्षित लोगों से सीमित नहीं मान सकते। ऐसी स्थिति में सामान्य नागरिक के साहस, संयम और न्यायशीलता का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। यह सुस्पष्ट है कि जो व्यक्ति भय और इच्छाओं से संघर्ष करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है, यद्यपि उसे मानव जीवन के शुभ और अशुभ का ज्ञान नहीं है, तथापि उसकी धारणाएं सम्यक् हैं, यह तो मानना ही पड़ेगा, किंतु उसे यह सम्यक्
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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