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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/40 प्लेटो ( 427 ई.पू. से 347 ई.पू.) ___ सुकरातीय परम्परा की हम दोनों ऐकान्तिक विचार-धाराओं अर्थात् सिनिक और सिरेनेक सम्प्रदायों की शेष रही हुई समस्याओं पर हम अरस्तु के परवर्ती सम्प्रदायों की चर्चा करते समय-विचार करेंगे। अभी हम सुकरातीय विचारधारा रूपी बीज किस प्रकार प्लेटोवाद रूपी र्मजरी तथा अरस्तूवाद रूपी फल में विकसित हुआ, उसकी जटिल प्रक्रिया पर विचार करेंगे। परवर्ती पीढ़ी प्लेटों के संवादों में जिस प्रसिद्ध प्रत्ययवाद को पाती है, उसके उद्भव में पूर्ववर्ती अनेक तात्त्विक विचारणाओं एवं सुकरात का मिश्रित प्रभाव देखा जा सकता है, किंतु उसमें प्रत्येक विचार किस ढंग से और कितनी सुगमता के साथ एक दूसरे से संयोजित हुआ है, उसका अनुमान कर पाना भी कठिन है' प्रस्तुत विवेचना में हमनें प्लेटो के दृष्टिकोण पर सुकरात की शिक्षाओं के संदर्भ में ही विचार किया है, क्योंकि प्लेटो के प्रत्ययवाद का नैतिक पक्ष, जो कि हमारी इस विवेचना से संबंधित है, निश्चित ही उसका सुकरातीय परम्परा से सम्बन्ध है। प्लेटो का नैतिक दर्शन एक अवरूद्ध जल-प्रवाह नहीं है, अपितु वह एक ऐसी सतत प्रवाहशील जलधारा है, जो कि सुकरात से प्रारम्भ होकर अरस्तु की पूर्ण एवं सुस्पष्ट विचार शैली की ओर गतिशील है, यद्यपि प्लेटो की शिक्षाओं में कुछ वैराग्यवादी और रहस्यवादी संकेत उपस्थित हैं, जो कि अरस्तु के चिन्तन में किसी भी रूप में उपलब्ध नहीं होते हैं और प्लेटो की मृत्यु के साथ ही ग्रीक दर्शन से विलुप्त हो जाते हैं, तथापि उनकी ये शिक्षाएं नव-पाइथागोरसवाद और नव-प्लेटोवाद में पुनः अतिरंजित रूप में विकसित एवं पुनर्जीवित हो जाती है। सर्वप्रथम हम प्रोटागोरस नामक संवाद में प्लेटो के नैतिक विचारों से अंतर देख सकते हैं। इस संवाद में प्लेटो ज्ञान के विषय को परिभाषित करने का एक महत्वपूर्ण, किंतु स्पष्ट प्रारंभिक प्रयास करते हैं। वे अपने गुरु सुकरात के समान ही ज्ञान को सभी सद्गुणों का सार बताते हैं। वे यह भी मानते हैं कि ऐसा ज्ञान सुख और दुःख का मापक है, जहां सामान्य व्यक्ति भय या इच्छाओं का दास होकर वर्तमान की अपेक्षा भविष्य की अनुभूतियों का कम मूल्यांकन करता है, वहां बुद्धिमान् व्यक्ति इस गलती से बचता है। प्लेटो का यह सुखवाद पाठको को परेशानी में डाल देता है। सम्भवतः स्वयं प्लेटो ने भी इस सखवाद को आंशिक सत्य की अभिव्यक्ति से अधिक स्वीकार नहीं किया होगा, तथापि जैसा कि सिरेनैक्स सम्प्रदाय (इसे यह नाम बाद में मिला)के ऐसे ही दृष्टिकोण
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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