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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 311 अर्थर जेम्स बेलफोर अपने ग्रंथ ईश्वरवाद और मानवतावाद ( 1915) में यह बताने का प्रयास करते हैं कि सामान्य रूप में मूल्य, जिनमें नैतिक- - मूल्य भी निहित हैं, यदि सत्ता के ईश्वरवादी - दृष्टिकोण से अलग कर लिए जाते हैं, तो वे अपने महत्त्व और प्रभाव तथा हम पर अपने अधिकार का बहुत-कुछ भाग खो देंगे। क्लेियेंट सी, जे. देब अपने ग्रंथ ईश्वरीय - व्यक्तित्व और मानव-जीवन (1920) में नैतिकता को एक व्यक्ति के प्रति श्रद्धा से जोड़ते हुए नैतिकता में आबंध के प्रत्यय पर सामान्यतया दिए जा रहे बल की अपेक्षा अधिक बल देते हैं। वे कहते हैं कि आबंध में हमें एक ऐसे पक्ष को स्वीकार करना होगा, जो न केवल स्वायत्तता है, वरन् आधीनता भी है, जो कि विचार करने पर वस्तुतः ईश्वरीय-तंत्र के रूप में बदल जाती है। 'शुभ' का प्रत्यय के सम्बंध में आधुनिक नीतिशास्त्र का पिछला सर्वेक्षण हमें शुभों की अनेकता की एक आंगिक इकाई की ओर ले जाता प्रतीत होता है, लेकिन वेब के द्वारा निम्न पद्यांश में, जिसमें कि वह नैतिकता के विषय में अपनी ईश्वरवादी - स्थिति स्पष्ट करता है, उसका इस अर्थ में प्रयोग नहीं किया गया है। वह लिखता है कि उस सर्वोच्च सत्ता की धारणा, जो कि न केवल शुभ है, अपितु एक शुभ सत्ता भी है, नीतिशास्त्र के विद्यार्थी के लिए एक ऐसी कल्पना नहीं है, जिसे एक पूर्ण प्रज्ञा के विचार को क्रियान्वित करने की इच्छा के द्वारा सूचित किया गया है ( फिर चाहे वह इच्छा कितनी ही तर्कसंगत और अपरिहार्य क्यों न हो), अपितु स्वयं नैतिक अनुभवों के तथ्यों पर चिंतन करके जिसका अनुमोदन किया गया है।
मानवीय स्वतंत्रता
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पिछले 50 वर्षों में मानवीय स्वतंत्रता की समस्या के संदर्भ में नीतिशास्त्र के लेखकों का दृष्टिकोण बदल गया है । वर्त्तमान की अपेक्षा प्राचीनकाल में नैतिक - उत्तरदायित्व के प्रत्यय पर अधिक ध्यान दिया जाता था और उसे स्वतंत्रता के प्रत्यय से निकट रूप से सम्बंधित माना जाता था। अब, सामान्यतया नैतिक-चयन के तथ्य को स्वीकार करना ही पर्याप्त समझा जाता है। यांत्रिक-निर्धारणवाद और अतंत्रतावाद (अनिर्धारणवाद) के बीच आत्मनिर्धारणवाद की धारणा के द्वारा एक मध्यममार्ग खोजने का प्रयास किया गया, जो कि पूर्वकथित स्थिति की अपूर्णता पर विजय पाने में सहायक होते हुए भी चरित्र के सुधार की सर्वाधिक कठिन समस्या की व्याख्या के लिए पर्याप्त सिद्ध नहीं हो सकता। समकालीन नीतिशास्त्र में स्वतंत्रता का विचार एक दूसरे ढंग में भी आया है। उदाहरण के लिए,