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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/312 जान डिवी के दर्शन में अब यह स्वतंत्रता का प्रत्यय नए मूल्यों और उनकी उपलब्धि के नए तरीकों की खोज में क्रिया की स्वतंत्रता को भूतकालीन-विचारों की गुलामी से बुद्धि की स्वतंत्रता को तथा स्थिर आदर्शों की अधीनता से नैतिक-चेतना की स्वतंत्रता को बताता है। इस प्रकार, स्वतंत्रता के प्रत्यय को मानवीय-चेतना के तात्त्विक-लक्षण की अपेक्षा व्यावहारिक-दृष्टिकोण के लिए एक सार्थक प्रत्यय के रूप में विवेचित किया गया है। यह उस दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके लिए दूसरे सभी क्षेत्रों के समान नीति-क्षेत्र में भी वर्तमान और भविष्य-नवीनता के लिए मार्ग खुला रहता है और इस अर्थ में यह विकासवाद की नव्योत्क्रांतवादी आधुनिक-विवेचना से सम्बंधित हो जाता है। (विकास के) प्रत्येक स्तर पर जो मूल्य प्रकट होते हैं, वे न तो पूरी तरह से भूतकाल की यांत्रिक-निर्धारण की प्रक्रिया के कारण होते हैं और न वे एक ऐसे आदर्श के कारण अस्तित्व में आते हैं, जिसकी सत्यता किस रूप में भविष्य के गर्भ में निहित है या शाश्वतता में निहित है। दूसरे शब्दों में, नव्योत्क्रांत के रूप में मूल्यों की व्याख्या न तो उनके निर्मित कारणों के प्रसंग में (जैसा कि भौतिकवाद या प्राचीन प्रकृतिवाद मानता है) और न उनके अंतिम कारणों के प्रसंग में (जैसा कि प्राचीन पारम्परिक-अध्यात्मवाद मानता है) की जा सकती है। इस बात पर कुछ कारणों से यह आपत्ति की जा सकती है कि नव्योत्क्रांतवादी-विकास के रूप में मूल्यों के विवेचन की यह पद्धति उन अंतिम समस्याओं को अपेक्षित कर देती है, जो कि इतना होने पर भी मानव-मस्तिष्क को कचौटती रहती है, यद्यपि नीतिशास्त्र में मानवीय-क्रियाओं की यथार्थता और नैतिकप्रगति में स्वैच्छिकता के तथ्य को स्वीकार कर लेना पर्याप्त माना जा सकता है। नैतिकता और अमरता नैतिकता के लिए अमरता के प्रत्यय के महत्त्व को स्वीकार करने के लिए रशडाल के द्वारा विशेष रूप से जोर दिया गया। रशडाल यह मानता है कि अमरता का प्रत्यय ईश्वर के प्रत्यय की अपेक्षा भी नीतिशास्त्र के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है। नैतिक-आदर्शों की तर्कसंगतता, उनकी उपलब्धि सम्भाव्यता से जुड़ी हुई प्रतीत होती है और नैतिक-आदर्शों की यह उपलब्धि एक साधारण मानवीय-जीवन की कालावधि में हो पाना सम्भव नहीं है, यद्यपि समकालीन चिंतन मुख्यतः जीवन की कालावधि की अपेक्षा जीवन के गुण से सम्बद्ध है। जीवन जीने में नैतिक-शुभ नैतिक-अशुभ की अपेक्षा वरेण्य माना जाता है और यदि
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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