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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 275 नीत्शे (1844 से 1900 ) एक दूसरा विकल्प इन दृष्टिकोणों को गलत मानकर इन्हें अस्वीकार करने के लिए बचा हुआ था। यह विकल्प नीत्शे ने ग्रहण किया। उसके अनुसार, नैतिकता के प्रचलित दृष्टिकोणों को निरस्त किया जाना चाहिए, क्योंकि उनके विरोध में बहुत कुछ था। विकास का सिद्धांत सभी मूल्यों के मूल्य के अतिक्रमण की आवश्यकता को प्रतिपादित करता है। नैतिक - साध्य को जिस रूप में हम जानते हैं, वह मानव की स्थिति से परे एवं अति मानवीय है और उसकी पद्धति निर्बल के विनाश के द्वारा सबल की उत्तरजीवितता अर्थात् संघर्ष की है, जबकि प्रचलित नैतिकता में प्रत्येक वस्तु सबल के स्थान पर निर्बल की उत्तरजीवितता को प्रोत्साहित करती है और वंशापकारक होने के कारण इसका परित्याग कर देना चाहिए। प्रचलित परम्परागत नैतिकता को नीत्शे ने ईसाई- नैतिकता के रूप में लिया है। यह नैतिकता निर्बल करने वाले सहानुभूति, विनम्रता, आत्मसमर्पण आदि गुणों पर आधारित और उन लोगों के लिए, जो कि उस बलिदान के योग्य भी नहीं है, सबल के बलिदान की समर्थक हैं। यह नैतिकता गुलामों की नैतिकता है और स्वामीत्व की उस नैतिकता की विरोधी है, जिसकी शिक्षा नीत्शे ने दी है। तार्किक - संकल्प सत्य का संकल्प है। यहां यह पूछना प्रासंगिक है कि किस साध्य अथवा किस प्रकार के मूल्य की उपलब्धि के लिए इस शक्ति का उपयोग किया जाए ? नीत्शे के ग्रंथों में इन प्रश्नों के उत्तर बहुत ही अधिक अनिश्चित और अस्पष्ट हैं। यद्यपि उसकी सामान्य रुचि से असंगत होते हुए भी उसके ग्रंथों में कुछ ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनके अनुसार इस शक्ति का उपयोग सामाजिक-साध्यों के लिए किया जाए, लेकिन उसकी व्याख्या में मुख्य रूप से सुखवादी - लक्षण मिलते हैं। उसके अनुसार, शक्ति सबल व्यक्ति के सुखों की अभिवृद्धि के लिए है। मनुष्य के नैतिक साध्य की इस धारणा के अतिरिक्त भी नीत्शे की अति मानव के विकास की धारणा भी शक्ति के संकल्प के समान ही मनुष्य के लिए शुभ के लक्षण की कोई सुस्पष्ट व्याख्या देने में असमर्थ है। उसका शक्ति का प्रत्यय मुख्यतया शारीरिक शक्ति का प्रत्यय है। यद्यपि इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि अक्सर विकास की प्रक्रिया बौद्धिक-श्रेष्ठता और सामाजिक-सहयोग के द्वारा शारीरिक दृष्टि से सबल व्यक्ति पर निर्बल व्यक्ति की विषय पर आधारित है, तथापि नीत्शे ने विकास की प्रक्रिया में व्यक्तियों के सामाजिक सहकार और सामाजिक-समन्वय के उस महत्त्वपूर्ण -
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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