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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/274 किया जा सकता है। वे व्यक्ति, जिनकी नैतिक-दृष्टि से प्रशंसा की जाती है और वे व्यक्ति, जिनकी नैतिक-दृष्टि से निंदा की जाती है, अपने निहितार्थ में तात्त्विकव्यक्तित्व की दृष्टि से समान हैं। एक पूर्ण व्यक्तित्व पर दिए गए निर्णय उन विशेष निर्णयों से, जो कि व्यक्ति के कार्यों और स्वभावों पर दिए जाते हैं, भिन्न हैं और उनसे अधिक व्यापक हो सकते हैं, फिर भी सामान्यतया व्यक्तित्व पर दिए गए नैतिक-निर्णय बहुत कुछ रूप में ऐसे विशेष निर्णयों पर निर्भर होते हैं। एक व्यक्ति को तब भला व्यक्ति माना जाता है, जब कि उसके गुणों को शुभ और उसके कार्यों को उचित कहा जा सके या कम-से-कम उसमें बुरे गुण की अपेक्षा अच्छे गुण ज्यादा हों, या उसके कार्य अनुचित की अपेक्षा उचित अधिक हों। पुनश्च, व्यक्ति का अस्तित्व वैयक्तिक-अनुभूतियों की धारा के रूप में जीवन-प्रक्रिया है और मूल्यात्मक-निर्णय मुख्यतः उनसे या किन्हीं प्रसंगों से इनके विषय में दिए जाते है। अतः, यह कहा जा सकता है कि हमारा सम्बंध नैतिक-व्यक्तित्व के साथ इतना नहीं है, जितना कि नैतिक-जीवन और नैतिक-मूल्य के साथ है। विकासवादी-नीतिशास्त्र प्राकृतिक-विज्ञानों की द्रुत प्रगति के साथ-साथ तात्त्विक-आदर्शवाद के प्रति असंतोष भी बढ़ता गया। अपने-अपने क्षेत्रों में प्राप्त सफलताओं से प्रेरणा पाकर बहुत से विचारकों ने नैतिक-दर्शन की उस व्याख्या को जारी रखा, जिसे सिजविक ने विकासवादी-नीतिशास्त्र कहा है। आधुनिक सभी नीतिशास्त्र के लेखक नैतिकता और नैतिक-सिद्धांतों में विकास को स्वीकार करते हैं। आधुनिक युग के सभी नीतिशास्त्र किसी अर्थ में विकासवादी हैं, लेकिन जिसे विकास का नीतिशास्त्र या विकासवादीनीतिशास्त्र कहा जा सकता है, उसे यह सिद्ध करना होता है कि जैविक-विकास की प्रक्रिया न केवल नैतिक-प्रगति का इतिहास है, अपितु अपने घटकों और प्रवृत्तियों के नैतिक-गुणों की कसौटी या प्रभावक भी है। यद्यपि डार्विनवाद के अनेक प्रारम्भिक व्याख्याताओं ने इसे स्वीकार किया है, लेकिन इसके कुछ महत्त्वपूर्ण अपवाद भी रहे हैं। थामस हेनरी हक्सले ने विकास और नीतिशास्त्र पर अपने रोमनेस-व्याख्यानों (1893) में प्रकृति की विधियों का विरोध किया है। मानवीय-नैतिकता के लक्ष्यों और विधियों से यह निष्कर्ष निकलता है कि नैतिकता प्रकृति की विधियों के अनुसरण की अपेक्षा उनके विरोध में ही निहित है, यद्यपि इसमें उसने नैतिकता के प्रचलित दृष्टिकोणों की मौलिक-प्रवृत्ति को स्वीकार किया है।
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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