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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/273 सकता है। वस्तुतः, ऐसा कोई भी आत्मसंगत उच्चतम वर्ग नहीं है, जिसके अधीन नैतिक-जीवन के विभिन्न तथ्यों को संतोषप्रद रूप से वर्गीकृत किया जा सके। व्यक्तिगत-नैतिकता के केंद्रीय-प्रत्यय के रूप में आत्म-साक्षात्कार और व्यक्तित्व की धारणाएं जिन दोषों से ग्रस्त है, उनकी परवाह न करते हुए व्यक्तित्व की धारणा नैतिकता का केंद्रीय-तत्त्व रही है और बहुत-से विचारकों की दृष्टि में आज भी है। उदाहरणार्थ, सीमन ल्योरी के ग्रंथ का मुख्य प्रतिपाद्य विषय स्वतंत्रता के द्वारा बौद्धिक-आत्मा की आत्मोपलब्धि है। जेम्स सेंथ के ग्रंथ (1894) का मुख्य विषय स्वतंत्र रचनात्मक व्यक्तित्व की आत्मोपलब्धि है। थियोडोर लिप्स कांटीय-दृष्टिकोण से लिए गए अपने ग्रंथ (1899) में यह मानते हैं कि नैतिक-व्यक्तित्व ही परम शुभ और निरपेक्ष मूल्य है। यहां तक कि प्रत्येक सुख का मूल्य व्यक्तिगत सुख के मूल्य के द्वारा प्रतिबंधित है। आदर्शों के रूप नैतिक-मांग उस व्यक्तित्व की नैतिक-चेतना की अभिव्यक्तियां हैं और मनुष्य की सारभूत प्रकृति है। हरमन ने भी अपने ग्रंथ (1896) एवं (1900) में तथा दूसरे कुछ ग्रंथों में मानवीय-स्वतंत्रता के आधारों पर एक ऐसा ही दृष्टिकोण विकसित किया है। मेक्स वेन्टस्चर ने अपने ग्रंथ (1902-1905) में पूर्ण स्वतंत्रता के तात्त्विक-प्रत्यय के आधार पर बताने का प्रयास किया है कि व्यक्तित्व ही परम मूल्य है। ये लिखते हैं कि अपनी वास्तविक सत्ता की उच्चतम अभिव्यक्ति के लिए और अपनी पूर्ण स्वतंत्र इच्छा के निश्चित मौलिक नियमों के लिए प्रयत्न करो। अपनी स्वयं की सत्ता की इस स्वतंत्र क्रियाशीलता का सर्वाधिक सशक्त एवं व्यापक उपयोग करो। फ्रांस मूलर लेयर ने भी पूर्ण राज्य और पूर्ण व्यक्तित्व की धारणाओं के सहयोग से प्रत्यक्षवादी दर्शन को क्रियाशील नैतिक मोड़ दिया। यद्यपि विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि व्यक्तित्व का प्रत्यय इतना जटिल और अनिश्चित है कि उसे इतनी सरलता के साथ प्रमुख नैतिक प्रत्यय के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। व्यक्तित्व एक तात्त्विक परम साध्य है, इस सुझाव का विरोध किया जा चुका है और व्यक्तित्व की तात्त्विक-अवधारणा से नैतिकप्रत्ययों के निगमन की संभावना से भी इंकार किया जा चुका है। सामान्यतया, नैतिकनिर्णयों में ऐसे कथन निहित हैं कि जिन्हें आकारिक-रूप में निम्न प्रकार से अभिव्यक्त किया जा सकता है, जैसे- यह व्यक्तित्व अच्छा है, वह व्यक्तित्व बुरा है आदि केवल तात्त्विक-व्यक्तित्व के स्वत्व को नैतिक मूल्यों के सार के रूप में मान्य नहीं
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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