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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/272 (अर्थात् देश-काल सापेक्ष है)। आत्मा के स्वरूप की चर्चा करते हुए ब्रेडले कहता है कि आत्मा केवल ससीम नहीं है, असीम (पूर्ण) भी है। इस पर से यह निष्कर्ष निकाल लेना संभव है कि सत् के रूप में आत्मा पूर्ण है और नैतिकता एक आभास (भ्रम) है। टेलर (1896 से) यद्यपिए.ई. टेलर के परवर्ती विचार उसके ग्रंथ आचरण की समस्या में वर्णित विचारों से किसी अर्थ में मूलतया भिन्न हैं, फिर भी आचरण की समस्या नामक पुस्तक में उसने अपने शिक्षक ब्रेडले के कुछ विचारों की एक रोचक आलोचना प्रस्तुत की है। टेलर की आलोचना-पद्धति ब्रेडले के समान ही है। वह भी यह बताने का प्रयास करता है कि नैतिकता में एक विरोध निहित है और इस रूप में वह परम सत् का एक अंग (घटक) नहीं हो सकती है, लेकिन जहां ब्रेडले नैतिक-आचरण के लिए अपूर्णता की आवश्यकता पर बल देते हैं, वहां टेलर ने उस असंगति पर मुख्य रूप से बल दिया, जिसे देख पाने में ब्रेडले असफल रहा था। जहां ब्रेडले के लिए आत्मलाभ और आत्मसात् होना वैयक्तिक-सुख और सामाजिक-सुख आखिरकार एक ही हैं, वहां टेलर के लिए वे अंतिम रूप में परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं। निःसंदेह, नैतिकता में दोनों का ही स्थान है और इस प्रकार नैतिकता आत्मविरोधी है। टेलर ने इस बात पर भी बल दिया है कि पसंदगी और नापसंदगी के प्राथमिक नैतिक-स्थायीभाव अपने सरलतम रूप में न तोस्वहित हैं और न लोकहित हैं। अनुमोदन का सम्पूर्ण क्षेत्र एक ओर व्यक्ति और उसकी संस्कृति के सम्बंधों से विकसित हुआ है तथा दूसरी ओर, व्यक्ति और समाज के कल्याण के पारस्परिक संबंधों से विकसित हुआ है। तथ्यों के बिना विकृत किए आत्महितवाद और लोकहितवाद में से किसी को भी नैतिकता का संपूर्ण आधार नहीं बनाया जा सकता है। इतना होते हुए भी यह कहना कि आत्महित और लोकहित सहगामी हैं, प्रमाणों की दृष्टि से विरोधी ही प्रतीत होता है। कुल मिलाकर, अपने खुद की भलाई करने में हमें अपनी शक्ति पर समाज के सुख के लिए योगदान करना चाहिए, लेकिन सहमति आखिरकार पूर्णता के विचार से दूर है और किसी भी समय किसी भी एक पक्ष की आदेश के पालन की असाधारण कठोर मांग के कारण समाप्त हो सकती है। मानव-जाति ने आचरण के इन दोनों ही आदर्शों को स्वीकार किया है, लेकिन उनमें कभी भी समन्वय नहीं किया गया है। मेरा स्थान और उसके कर्त्तव्य का सिद्धांत अंतिम रूप से संतोषजनक नहीं कहा जा
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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