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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 268 संकल्प की प्रक्रिया में यह पीड़ा यद्यपि सतत रूप से होती है, लेकिन यह आकस्मिक है। मैं परोपकार के कार्य की अपेक्षा करने पर पीड़ा का अनुभव करता हूं, क्योंकि मैं परोपकार को एक आचरणीय-व्यवहार मानता हूँ। 68. उच्चतम निरपेक्ष शुभ पूर्णतया शुभ या बौद्धिक - संकल्प की ईश्वरीय पूर्ण कृपा से एकता है। वह कृपा, जिससे ईश्वरीय सत्ता युक्त मानी जाती है। 69. कोलरिज के इस दृष्टिकोण को जे. एस. मिल ने उस पर लिखे गए एक निबंध (सन् 1940) में स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त किया है। उस निबंध में कोलरिज और जर्मन तथा कोलरिजीय-जर्मनी-सिद्धांत का बार-बार व्यवहार हुआ है। 71. 70. देखें कोलरिज- विबजोग्राफियां लिटरेचरिया वाल्यूम 1 पृष्ठ 145-146 इस प्रकार, फ्रेन्ड के प्रथम खण्ड के पृष्ठ 340 ( सर्वप्रथम प्रकाशित 1809) में वह कांट के इस मौलिक सिद्धांत के प्रति पूर्ण श्रद्धा प्रकट करता है कि तुम इस प्रकार कार्य करो कि बिना किसी विरोध के इस बात का संकल्प कर सको कि तुम्हारे आचरण का सिद्धांत सभी बौद्धिक- प्राणियों का नियम बन सके, वह एक सार्वभौमपूर्ण सिद्धांत तथा नैतिकता का मार्गदर्शक हो । - 72. मैं मानता हूं कि गलीयन - प्रभाव की अभिव्यक्ति श्री जे. एच. स्टलिंग के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हेगेल के प्रकाशन से प्रारम्भ होती है। 73. देखें- पृष्ठ 258 74. यद्यपि शापन हावर से भिन्न हार्टमेन ' अचेतन' को मानता है। उसके अनुसार, अस्तित्व का अंतिम आधार न केवल अचेतन संकल्प ही है, अपितु अचेतन बुद्धि भी है।
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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