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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/267 हो सकती है। स्पेन्सर यह मानते हैं कि पूर्ण रूप से स्थापित हो जाने पर समाज-विज्ञान में सुदूर भविष्य के आदर्श समाज की निश्चित भविष्यवाणी करने में समर्थ होगा। दूसरी ओर, स्टीफन का कहना यह है कि वर्तमान में समाज-विज्ञान उन असत्यापित अनुमानों तथा अस्पष्ट सामान्यताओं की अर्द्ध वैज्ञानिक शब्दावलि के रूप है। 63. यद्यपि यह ध्यान रखना होगा कि कुछ निर्धारणवादियों (नियतिवादियों) ने इस तर्क को कुछ भिन्न अर्थ में लिया है, उनके अनुसार, निर्धारणतया या विवशता को बुरी इच्छाओं के सम्बंध में भी मानना होगा। उनके अनुसार दण्ड तभी उचित माना जा सकता है, जबकि वह, जिसे दण्ड दिया जा रहा है, उसके लिए हितकर हो, अथवा वे यह मानते हैं कि शक्ति का वैधानिक उपयोग अराजक बल के नियमन के लिए है। 64. यह ध्यान रखना होगा कि बेंथम का राजनीतिक सिद्धांत ड्यूमांट के फ्र सीसी-भावानुवाद के द्वारा ही विख्यात हुआ और उसके नागरिक-कानून के सिद्धांत से सम्बंधित भाग अन्य किसी रूप में भी संसार के सम्मुख नहीं आया। 65. . कांट के बहुत ही महत्त्वपूर्ण नैतिक ग्रंथ ग्रउण्ड सेगुंग अवर मेटाफि सिके उरसिटेन एण्ड दि क्रिटिक द डर प्रेक्टिसेकेन वर्णनफे क्रमशः 1785 ई. एवं 1788 ई. में प्रकाशित हुए थे। सन् 1830 ई. में सर जेम्स मेकिन्टोस ने इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में नैतिक दर्शन के विकास पर अपने निबंध में (कांट के नैतिक-सिद्धांत को) प्रकाशित किया। इस निष्णात लेखक ने जिस भाषा में कांट के नैतिक सिद्धांत को प्रस्तुत किया वह यह बताता है कि वह अंग्रेजों की विकसित प्रज्ञा में भी अभी तक अपना मार्ग प्राप्त नहीं कर सकी। सन् 1836 में भी सेम्पल के कांट के प्रमुख नैतिकरचनाओं के अंग्रेजी भाषांतर से कांट के विचारों को जानने में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। 66. अंग्रेज लेखकों में इस प्रश्न पर उपयोगितावादी-विचारक गाडविन के अपने ग्रंथ राजनीतिक न्याय' में प्रस्तुत विचार कांट के सर्वाधिक निकट लगते हैं। गाडविन की दृष्टि में सामान्य सुख के प्रेरक कार्यों में बुद्धि ही एक सम्यक् प्रेरक है। बुद्धि ही मुझे यह बताती है कि दूसरे किन्हीं लोगों का सुख मेरे स्वयं के सुख से अधिक मूल्यवान् है और इस सत्य का दर्शन ही मुझे अपने सुख की अपेक्षा दूसरों के सुख के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित करता है। इसके विपक्ष में यह कहा जा सकता है कि यह प्रेरक वस्तुतः स्वार्थपरक विकल्प में चुनाव से उत्पन्न पीड़ा है। गाडविन उत्तर देता है कि
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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