SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/269 अध्याय - 5 आधुनिक युग के नैतिक विचार (मुख्यतया इंग्लैण्ड के नैतिक विचार) . 19वीं शताब्दी के अंत के 25 वर्ष और 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ के 25 वर्ष, इन पचास वर्षों में आदर्शवादी, प्रकृतिवादी (निसर्गवादी) और उपयोगितावादी नीतिशास्त्र के रूप में प्रचलित थे, लेकिन उसी समय इनके विरोध में एक निश्चित आंदोलन भी था। यह विरोध नीतिशास्त्र को पूर्व-मान्य तात्त्विक-सिद्धांतों पर या गलत रूप से प्रयुक्त विकास के सिद्धांतों पर या मिथ्या मनोवैज्ञानिक-धारणाओं पर आधारित करने के सम्बंध में था। समाजशास्त्रीय-सिद्धांतों के अंतर्गत नीतिशास्त्र की एक पूर्ण व्याख्या को खोजने के प्रयास भी किए जा रहे थे। इसी प्रकार, नीतिशास्त्र की रचनात्मक-प्रवृत्तियों के द्वारा नीति को मूल्यों की एक व्यापक पूर्णता के एक अंग के रूप में समझा जा रहा था, जिसका सामान्य अध्ययन इस युग की दार्शनिक-प्रवृत्तियों का एक विशिष्ट पहलू था। निरपेक्ष-आदर्शवाद इस युग के टी.एच. ग्रीन के आदर्शवादी-नीतिशास्त्र का व्यापक प्रभाव था, लेकिन अनेक क्षेत्रों में उसके विरोध में यह कहा जा रहा था कि ग्रीन के तत्त्वमीमांसात्मक तक नैतिक-उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त है। यह बात स्वयं सिजविक ने भी कही थी। अल्फर्ड एडवर्ड रेलर ने अपने ग्रंथ आचरण की समस्या में उसकी आलोचना का मुख्य विषय नैतिक-सिद्धांत को तत्त्वमीमांसात्मक पूर्व-धारणाओं पर आधारित करने की प्रवृत्ति था, जिसका सम्बंध ग्रीक से भी आता है। आदर्शवादीनीतिशास्त्र का ही एक दूसरा रूप फ्रेंसिस हर्बट बेडले ने अपनी पुस्तक (1876) में प्रस्तुत किया है। ब्रेडले का सिद्धांत आत्म-साक्षात्कार की धारणा के रूप में विकसित हुआ, जो कि तात्त्विक-तात्पर्यों से भिन्न नैतिक निष्कर्षों में ग्रीन के दृष्टिकोण से बहुत ही निकट था। ब्रेडले (1846-1924) ब्रेडले लिखता है कि हम जिस आत्मा का साक्षात्कार करने का प्रयास करते हैं, वह हमारे लिए एक पूर्ण है। यह आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं का एक मात्र नहीं
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy