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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/261 को सहानुभूति बताता है, जो कि अन्याय को नापसंद करती है, फिर चाहे वह अन्याय हमारे हितों का साधन ही हो, वह यह भी मानता है कि यह सहानुभूति वृहद् समाज में आत्महित की आवश्यक पूरक है। ‘इन्ववायरी इन्टू दी प्रंसीपल्स आफ मारल्स' नामक ग्रंथ में न्याय की मूलभूत उत्पत्ति आत्महित से हुई है, इसे अवश्य ही पार्श्वभूमि में रखा गया है, यद्यपि कोई भी सजग पाठक यह देखेगा कि ह्यूम ने इसका निषेध नहीं किया है। निस्संदेह उसने सहानुभूति के कार्यों को अधिक महत्व दिया है, फिर भी वह यह मानता है कि न्याय का क्षेत्र सहानुभूति के आत्महित से परोक्ष सम्बंध से सीमित होता है, उदाहरणार्थ वह स्पष्ट रूप से यह कहता है कि वस्तुतः हम बौद्धिक प्राणी होने के नाते न्याय की बाध्यता में नहीं हो सकते, हममें वह बौद्धिक प्राणी हमारी अपेक्षा इतना अधिक निर्बल है कि हमें उसकी नाराजगी से डरने का कोई कारण नहीं
28. यद्यपि यह ध्यान देने योग्य है, अपने प्रारम्भिक ग्रंथ की अपेक्षा अपने परवर्ती ग्रंथ में विचारों के साहचर्य के द्वारा राम इस व्याख्या को बहुत ही कम स्थान देता है। 29. जो लेखक यह बताते हैं कि ह्यूम उपयोगिता को उचित और अनुचित का मानदण्ड मानता है, उन्होंने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया कि हम उपयोगिता के पद पर प्रयोग कभी भी सुख का सहायक होने के उसका व्यापक अर्थ में नहीं करता है, जो अर्थ बेंथम और पेले की नैतिक विवेचनाओं में सामान्यतया उस शब्द को प्रदान किया था। वह उसे सदैव ही बाह्य शुभ की प्रवृत्ति के संकुचित अर्थ में ही प्रयुक्त करता है। वह उपयोगी को तात्कालिक पसंदगी से भिन्न मानता है, जैसा कि साधारण बातचीत में उन्हें अलग-अलग माना जाता है। 30. यह ध्यान देने योग्य है कि इस सदय निंदा में जो सहानुभूति अभिव्यक्त होती है, उसे ह्यूम परोपकार के विषय को दिए गए तात्कालिक सुख के प्रति सहानुभूति की अपेक्षा कर्ता के परोपकारी भाव के प्रति सहानुभूति मानता है। इस तथ्य का एक अधिक गहन विश्लेषण उसे उस दृष्टिकोण की ओर ले गया, जिसे बाद में एडम स्मिथ ने ग्रहण किया। वह दृष्टिकोण यह है कि ऐसे प्रसंगों में दृष्टा की सहानुभूति परोपकारी कर्ता के क्रियाशील आवेगों के प्रति सहानुभूति होती है। 31. ट्रीटाइस आन ह्यूमन नेचर, पार्ट सेकंड प.31 32. पृष्ठ 210 पर उद्धृत धारक के लिए उपयोगी गुणों की सूची देखिएं इन्ववायरी के पहले संस्करण में ह्यूम स्पष्ट रूप से सब अनुमोदित गुणों को सद्गुण के