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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/240 क्योंकि हाव्स से लगाकर अभी तक विवेचित लगभग सभी विचारकों के दर्शन मूलतः इंग्लैण्ड में ही उत्पन्न हुए थे और उन पर किसी विदेशी प्रभाव को देख पाना कठिन ही है। यद्यपि नीतिशास्त्र ही दर्शन की एक ऐसी शाखा है, जिसमें यह प्रभाव देखा जा सकता है। देकार्त के भौतिकशास्त्र और मनोविज्ञान का इंग्लैण्ड में बहुत अधिक अध्ययन किया गया और उसका तात्त्विक-दर्शन निश्चित ही लाक के दर्शन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण पूर्ववर्ती था, किंतु देकार्त के दर्शन में वास्तविक नीतिशास्त्र-सम्बंधी विवेचना मुश्किल से मिलती है। यद्यपि क्लार्क पहले स्पीनोबा के सिद्धांत से और बाद में व्यक्तिगत रूप से लाइनीज से प्रभावित रहा है, किंतु यह विरोधाभास तात्त्विकक्षेत्र तक ही सीमित था। कैथोलिक-फ्रांस विभिन्न विषयों में अंग्रेजों के लिए एक शिक्षा-क्षेत्र था, किंतु नीतिशास्त्र में नहीं। बेन्सेनिस्टस और जेस्यूट्स के बीच का महत्त्वपूर्ण संघर्ष इंग्लैण्ड के लिए बहुत ही परोक्ष रुचि का विषय रहा था। 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक फ्रांस के विद्रोही-दर्शन का प्रभाव इंग्लिश-चैनल के इस पार नहीं आ पाया था और तब भी उसका प्रभाव नैतिक-विचारों के क्षेत्र में अधिक महत्त्वपूर्ण भी नहीं था। यह सत्य है कि रूसों ने सभ्यता की बलि देकर भी प्राकृतिकजीवन के उन्नयन का साहस किया था तथा सुखद अज्ञान की प्रशंसा की थी, साथ ही, उसने निश्छल व्यवहार और असभ्य व्यक्ति के सरल सद्गुण को महत्त्वपूर्ण माना था ये सब बातें आधुनिक समाज की अप्राकृतिक, अशक्त एवं भ्रष्ट रचना की विरोधी थी और फ्रांस के साथ-साथ इंग्लैण्ड पर भी इनका काफी प्रभाव था। उसने जनता की असंक्राम्य (अहरणीय) प्रभुसत्ता को ही किसी राजनीतिक-व्यवस्था का एक न्यायपूर्ण और संगतिपूर्ण रूप माना। उसकी इस अर्थपूर्ण उद्घोषणा से इंग्लैण्ड के सामाजिक संविदे के प्राचीन सिद्धांत को विद्रोहात्मक-दिशा में विकसित होने के लिए एक शक्तिपूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ, फिर भी यह देखना रुचिकर है कि अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के उन अंग्रेज-लेखकों ने, जिन्होंने, जो फ्रांस के राजनीतिक-चिंतन की गतिविधियों से बहुत ही अधिक प्रभावित थे, उन नैतिक-आधारों के लिए, जिस पर कि वे बौद्धिक और समान-स्वतंत्रता की नई सामाजिक-व्यवस्था का निर्माण करना चाहते थे, अपने को प्राचीन इंग्लिश विचार-प्रणाली के निकटस्थ बनाए रखा, फिर चाहे वे प्राईस के समान सहजगान वादी सम्प्रदाय से सम्बंधित रहे हों, अथवा उन्होंने प्रीस्टले और गाडविन के समान सर्वाधिक सुख को नैतिकता के सर्वोच्च प्रमापक के रूप में स्वीकार किया हो। केवल बेंथमवाद की निरूक्ति में ही हमें हेल्वेटिअस नामक
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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