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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/239 के दण्ड-सम्बंधी निर्णय केवल सहानुभूति और प्रबुद्ध आत्म-प्रेम के द्वारा नीतिकृत स्वाभाविक रोष की अभिव्यक्ति हैं। ऐसा जिसके प्रति प्रकट किया जाता है और दण्ड जिसे दिया जाता है, यह उसकी एक ऐच्छिक-बुराई के प्रति सही और तार्किकप्रतिक्रिया है। चाहे बुरे कर्म करने वाला व्यक्ति कुछ स्वतंत्र भी हो, यदि ऐसा माना जाता है, तो भी ये रोष और दण्ड भविष्य में उसे पुनः दुष्कर्म करने से रोकते हैं । निर्धारणवादी यह मानता है कि एक अर्थ में चाहिए में सकना (समर्थता) निहित है, किंतु केवल मनुष्य की सामर्थ्य में निहित कार्यों को नहीं करने पर व्यक्ति दण्ड के योग्य या नैतिक आलोचना के विषय माना जाता है, किंतु निर्धारणवादी की व्याख्या यह है कि ‘सकना' और उसकी सामर्थ्य में केवल आवश्यक प्रेरणा के अतिरिक्त सभी दुरतिक्रम बाधाओं की अनुपस्थिति निहित है। निर्धारणवादी कहता है कि ऐसी स्थिति में यही न्यायसंगत है कि सदाचरण के हेतु प्रेरक के अभाव की पूर्ति करने के लिए दण्ड और नैतिक-असुखद की अभिव्यक्ति अपेक्षित है। यह मानने में भी निर्धारणवादी को कोई कठिनाई नहीं है कि यदि कोई कार्य अत्यधिक भय या प्रबलतम इच्छा के अधीन होकर किया जाता है, तो वह सामान्यतया कम निंदनीय होता है, क्योंकि बेंथम के अनुसार, ऐसे कार्यों में अभिव्यक्त अभिवृद्धि कम प्रबल प्रेरकों की अपेक्षा भविष्य के लिए कम हानिकर होती है। यद्यपि निर्धारणवादी (नियतिवादी) यह नहीं मानते हैं कि दण्डनीयता के वर्तमान निर्णय, जहां तक वे व्यवहार को प्रभावित करते हैं, वहां तक संकल्प की स्वतंत्रता के सिद्धांत के साथ संगति रखते हैं। वस्तुतः, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि हम सामान्यतया ऐसी असावधानी के लिए भी दण्ड देने का समर्थन करते हैं, जिससे किसी की बहुत ही अधिक हानि होती है। इसके लिए उस प्रमाण की भी कोई अपेक्षा नहीं होती है कि यह कार्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कर्त्तव्य के ऐच्छिक-असम्मान का परिणाम था। यही कारण है कि हम विद्रोही और षडयंत्रकारी को केवल इसलिए कम दण्डनीय नहीं मानते हैं कि वे निःस्वार्थ राष्ट्रीय-भावनाओं से युक्त हैं, यद्यपि हम निश्चय ही उनकी दुर्भावना रहितता पर विचार करते हैं। अंग्रेजी-नीतिशास्त्र पर फ्रांसीसी-प्रभाव यहां तक हमने इंग्लैण्ड के नैतिक-चिंतन का विवरण प्रस्तुत किया है। इसमें सम्बंधित विषयों पर समकालीन यूरोपीय चिंतन से उसके सम्बंधों को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है। वस्तुतः, ऐसा करना हमारे लिए अधिक सुविधाप्रद था,
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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