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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/236 इच्छाओं का अदल बदल है तथा ऐच्छिक-कार्य अंतिम क्षुधा का तात्कालिकअनुसरण है और अधिक निश्चित लाक के निर्धारणवाद की मान्यता यह है कि संकल्प वर्तमान के सबसे बड़े तनाव से चालित होता है, किंतु दोनों ही विचारकों में से कोई भी मानवीय-उत्तरदायित्व में आस्था रखते हुए किसी समन्वय की अपेक्षा करता हुआ नहीं दिखाई देता है। क्लार्क के उस दर्शन में भी, जिसमें अनिर्धारणवाद निस्संदेह एक मुख्य प्रत्यय है, संकल्प-स्वातंत्र्य का महत्त्व नैतिक-दष्टि की अपेक्षा तात्त्विकदृष्टि से ही है। क्लार्क का दृष्टिकोण यह है कि भौतिक-विश्व की इस रचना में आभासी ऐच्छिक-विशेषता की वास्तविक व्याख्या रचनात्मक-स्वतंत्र संकल्प (सृष्टा के संकल्प) के संदर्भ में ही की जा सकती है। शेफ्ट्सबरी और सामान्यतया सभी स्थायीभाववादी-नीतिवेत्ताओं की नैतिक-विवेचना में तो यह प्रश्न स्वाभाविक-रूप से ही दृष्टि से ओझल हो जाता है। सजग विचारक बटलर इसकी कठिनाइयों को यथासम्भव व्यावहारिकदर्शन के द्वारा दूर करने की कोशिश करता है, यद्यपि दार्शनिक-क्वेिचन की उस समग्र पद्धति के प्रति रीड के द्वारा प्रवर्तित महत्त्वपूर्ण विरोध के कारण इस प्रश्न की दिशा कुछ भिन्न हो जाती है, जो कि हमें अंत में ह्यूम तक ले जाती है। संकल्प की स्वतंत्रता पर रीड के विचार केवल सहज-ज्ञानवादी धारणाओं में संकल्प की स्वतंत्रता का प्रत्यय एक महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं रखता है, अपितु स्काटिश-सम्प्रदाय की दृष्टि में भी यह दर्शन का कार्य था कि वह संकल्प की स्वतंत्रता की विवेचना करे और उसका बचाव करे। इस सम्प्रदाय के द्वारा सामान्यतया यह माना गया है कि यह नैतिक-विवेचना का एक पूर्णतया आवश्यक विषय है और अच्छे और बुरे के पुरस्कार या दंड के निर्णय से अपरिहार्य रूप से जुड़ा हुआ है। ये निर्णय नैतिक-चेतना का एक आवश्यक अंग माने गए हैं। वस्तुतः, रीड दो मुख्य तर्कों के आधार पर संकल्प की स्वतंत्रता को सिद्ध करता है। 1. क्रियाशील शक्ति की सामान्य चेतना और 2. उत्तरदायित्व की सामान्य चेतना। रीड प्रथम तर्क यह देता है कि हममें प्रारम्भ से ही यह एक सामान्य और अनिवार्य धारणा है कि हम कार्य करने में स्वतंत्र हैं, अतः इसे हमारी रचना का ही एक परिणाम होना चाहिए और इसे अविश्वसनीय मानना हमारे रचयिता का ही निरादर होगा और यही अविश्वसनीयता सामान्य संदेहवाद का आधार प्रस्तुत करती है, किंतु इस तर्क का बल रीड की इस बात से कम हो जाता है कि असभ्य राष्ट्रों की यह
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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