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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/237 मान्यता स्वाभाविक है कि सूर्य, चंद्र, समुद्र और हवाएं सक्रिय शक्तियां हैं, जबकि दर्शन का विकास उन्हें जड़ और निष्क्रिय बनाता है, लेकिन रीड का दृष्टिकोण यह है कि सक्रियता के सामान्य विचार का कहीं-न-कहीं सम्यक् उपयोग होना चाहिए, जबकि चिंतन हमें यह बताता है कि यह सक्रियता का प्रत्यय केवल मानवीय-संकल्प की स्वतंत्रता में ही सम्यक् रूप से प्रयुक्त हो सकता है। एक ऐसा तथाकथित कर्ता, जिसके कार्य अपने कारणों के अनिवार्य परिणाम हैं और जो संकल्पकर्ता से भिन्न है, वस्तुतः कर्ता ही नहीं है। वह कहता है कि कर्म प्रबल प्रेरक से निर्धारित होते हैं, यह कथन किसी भी प्रमाणीकरण के योग्य नहीं है। यह तो जिसे सिद्ध करना है, उसे ही प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करना होगा। यदि हम प्रेरक के बल को उस परिणाम केवल के द्वारा मापे, जिसकी वह वस्तुतः इच्छा करता है, तो निस्संदेह यह सिद्ध करना सरल होगा कि प्रबल प्रेरक सदैव ही सफल होगा, लेकिन उस अवस्था में हमने विवाद के मूल बिंदु को ही पहले से ही स्वीकार कर लिया है। यदि दूसरी ओर, हम कर्ता की चेतना को ही हमारी कसौटी माने और प्रेरक के बल को उस प्रेरक के प्रतिरोध में होने वाली कठिनाई के द्वारा मापे, तब यह मानना पड़ेगा कि कार्यों के आवेगों का कभी-कभी सफलतापूर्वक निरोध होता है, किंतु तब भी कर्ता को उन आवेगों के विरोध की अपेक्षा उनके प्रति समर्पित होते जाना सरल लगता है। वस्तुतः, नैतिक-दृष्टि से प्रेरकों की महत्त्वपूर्ण प्रतियोगिता तब होती है, जबकि एक पाशविक (वासनात्मक)-दृष्टि से प्रबलतम प्रतीत होने वाला प्रेरक एक दिशा की ओर धकेलता है और एक बौद्धिक-दृष्टि से प्रबलतम प्रेरक दूसरी दिशा की ओर धकेलता है, अर्थात् जब हम यह मानते हों कि हमारी क्षुधाओं या वासनाओं का विरोध हमारे हित में है या हमारा कर्तव्य है और उनके प्रति समर्पित होने की अपेक्षा उनका प्रतिरोध करने के लिए अधिक प्रयत्न अपेक्षित है, ऐसे संघर्ष में आत्मा के विरुद्ध वासनाएं कभी-कभी सफल हो जाती है, किंतु वे सदैव ही सफल नहीं होती हैं। नैतिक-स्वतंत्रता तब शक्ति की वह अनुमति है, जो हमें यह बताती है कि या तो हम हमारे अच्छाई-सम्बंधी निर्णय के अनुसार आचरण करें या हम प्रबलतम वासना के आदेश का पालन करें। रीड के अनुसार, बौद्धिक और पाशविक-प्रेरकों के बीच एक ऐसा ही सम्बंध हमारे उत्तरदायित्व के सामान्य-प्रत्यय में और सामान्य नैतिक-निर्णय के लिए स्वीकृत उत्तरदायित्व की विभिन्न मात्राओं में निहित है। एक अप्रतिरोधी-प्रेरक (अर्थात् एक ऐसा प्रेरक, जिसका निग्रह सम्भव नहीं है) सामान्यतया निर्दोष माना जाता है। विवशता
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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