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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/224 कारण कम सुखद विकल्प को चुनता है, तो उसने किस अर्थ में वरण के अधिकतम प्रमापक को चुना है, लेकिन गुण के इस बाह्य-तत्त्व के प्रवेश के बाद भी मिल का उपयोगितावाद कोई एक ऐसा समुचित प्रमाण प्रस्तुत कर पाता है कि सभी प्रकार के स्वभाव और प्रकृति के मनुष्य इस जीवन में वैयक्तिक-सुख के अच्छे अवसरों पर भी सदैव सामान्य-सुख के उद्देश्य से निर्धारित होंगे, यह नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः, उसने ऐसे प्रमाण को प्रस्तुत करने का कोई प्रयास किया है, यह कहना कठिन है। अंत में, जब सामान्यतया यह माना जा सकता है कि समुचित नैतिकअंकुशों की मांग ही ऐसा तथ्य है, जिसे बेंथम और मिल के उपयोगितावाद असंगत कहकर युक्तियुक्त रूप से अस्वीकार नहीं कर सकते, तथापि यह एक ऐसी मांग है कि जिसे विशुद्ध रूप से अपने आनुभविक-आधारों का परित्याग किए बिना पूरी तरह से उपलब्ध नहीं किया जा सकता। यद्यपि यह कहा जा सकता है कि ऐसे दूसरे मार्ग भी हैं, जिनमें उपयोगितावादी नैतिक-दर्शन का प्रयोग उसके साथ जुड़े हुए नैतिकअंकुश सदैव ही समुचित हैं, इस बात पर विचार किए बिना भी किया जा सकता है। (1) इसे उन लोगों के लिए एक व्यावहारिक-मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जो सामान्य सुख को अपना परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं, चाहे वे इसे धार्मिक-आधार पर स्वीकार करते हों अथवा अपने मन पर छाई हुई निष्पक्ष सहानुभूति के आधार पर स्वीकार करते हों, अथवा यह मानते हों कि उनकी अंतरआत्मा उपयोगितावाद के सिद्धांतों के साथ संगतिपूर्ण रूप से काम करती है, अथवा अन्य किन्हीं दूसरे कारणों से, अथवा इन धारणाओं के किसी सम्मिश्रित आधार पर ऐसा मानते हों। (2) इसे एक ऐसे नियम के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है, जो निरपेक्ष रूप से पालनीय नहीं है, किंतु जिस सीमा तक वैयक्तिक और सामान्य-हित (सामाजिक-हित) सम्पत्ति हो, वहां तक पालनीय है। (3) और पुनः, इसे एक ऐसे प्रमापक के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरे लोगों के आचरणों की प्रशंसा अथवा निंदा करने के लिए बौद्धिक-रूप से समर्थ हो सके, चाहे वे स्वयं को सदैव ही इसके अनुसार आचरण करने के लिए योग्य नहीं मानते हों। हम नैतिकता को एक ऐसे पूरक विधान के रूप में भी स्वीकार कर सकते हैं, जो सम्यक् प्रकार से जाग्रत जनता के द्वारा लोकहित के आधार पर निर्मित जनमत से समर्थित होगा। ___ इस अंतिम दृष्टि-बिंदु से एक नया प्रश्न इस सम्बंध में खड़ा होता है कि
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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