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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 223 यद्यपि प्रेरकों के अपने इस विश्लेषण में एक दूसरे नैतिक-अंकुश पर विशेष बल देता है, जिसे बेंथम ने छोड़ दिया था। वह नैतिक अंकुश है- अपने साथियों के साथ एकता की भावना। यह एकता की भावना एक समुचित ढंग से विकसित नैतिकप्रकृति के व्यक्ति के लिए एक प्राकृतिक- मांग उपस्थित करती है। वह मांग यह है कि उसका लक्ष्य उन दूसरे लोगों की भावनाओं के साथ संगतिपूर्ण होना चाहिए। मिल कहता है कि यह भावना बहुत से व्यक्तियों में उनकी स्वार्थपरक भावना की अपेक्षा बहुत ही कम बलशाली होती है, अथवा अक्सर इसका पूरी तरह अभाव होता है, किंतु यह भावना जिन लोगों के मन में स्वतः ही उपस्थित होती है, उनके लिए यह एक ऐसे गुण के रूप में होती है कि जिसके बिना होना उनके लिए अच्छा नहीं है और यह धारणा भी अधिकतम सुख की नैतिकता का चरम अंकुश है। जिन व्यक्तियों में यह भावना है, वे यह मानते हैं कि उनके लिए इसका नहीं होना अच्छा नहीं है। यह मानने से मिल का प्रस्तुत तात्पर्य यह नहीं है कि इस सम्बंध में वह आश्वस्त है कि वे व्यक्ति सामान्य सुख में जितनी अभिवृद्धि करेंगे, उसी अनुपात में अपने व्यक्तिगत सुख को उपलब्ध करेंगे। इसके विपरीत, वह यह कहता है कि वर्तमान विश्व - व्यवस्था की अपूर्णता की अवस्था में एक व्यक्ति अक्सर दूसरे लोगों को सुख की प्राप्ति हो, इसके लिए अपने स्वयं के सुखों के पूर्ण त्याग के द्वारा ही ऐसा कर सकता है और करता है, लेकिन वह यह सोचता है कि बिना सुख की भावना के कार्य करने की चेतन योग्यता प्राप्तव्य सुखों को उपलब्ध करने का अच्छा अवसर प्रदान करती है, यह योग्यता व्यक्ति को जीवन के संयोगों से ऊपर उठाती है और उसे अपनी बुराइयों की चिंता की अधिकता से मुक्त करती है। एपीक्यूरिनवाद व्यक्ति के सुख की परिभाषा प्रस्तुत करता है और स्टोइकवादी मनःस्थिति उस शुभ को प्राप्त करने का सबसे अच्छा अवसर प्रदान करती है। स्टोइक और एपीक्यूरियन-धारणाओं का यह विचित्र सम्मिश्रण मिल की उस स्थिति के साथ जोड़ा जा सकता है, जिसे वह बेंथम के विरोध में स्वीकार करता है। बेंथम के विरोध में मिल सुखों के मात्रात्मक - अंतर की अवहेलना करते हुए मात्रात्मक - अंतर से भिन्न गुणात्मक - अंतर स्वीकार करता है। सुख में गुणात्मक अंतर की यह स्वीकृति सुख को कर्त्तव्य की कसौटी मानने हेतु सहज बुद्धि से समन्वय करने की दृष्टि से कुछ प्रभावकारी है, किंतु यह लाभ संगति का बलिदान करके प्राप्त किया गया है। चूंकि यह देख पाना कठिन है कि जब एक व्यक्ति सुख के दो विकल्पों में से गुणात्मक दृष्टि से उच्च होने के
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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