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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/203 पर दूसरे कम सामान्य नियमों को स्थानापन्न कर लेते हैं, जैसे कि (धर्मग्रंथ की आज्ञा-पालन के अतिरिक्त) अपने स्वयं के और दूसरे लोगों के नैतिक-बोध को सम्मान देना और दया एवं शुभेच्छा के प्रति हमारी स्वाभाविक अभिरुचि, व्यक्तियों की अपेक्षा अपने निकट संबंधियों की तथा परोपकारी एवं धार्मिक-व्यक्तियों की प्राथमिकता, सत्यवादिता के प्रति निष्ठा रखना, नागरिक-अनुशासन का पालन करना आदि ये गौण नियम मुख्यतया हमारे विचारपूर्ण कार्यों का निर्देशन करते हैं। उन आपदकालीन परिस्थितियों में जहां विचार सम्भव ही नहीं होता, नैतिक-इंद्रिय (नैतिक-अंतर्बोध) ही हमारी मार्गदर्शक होगी, किंतु जब इन दो या दो से अधिक सिद्धांतों में आपस में विरोध हो, जो कि अक्सर प्रत्यक्षतः दिखाई देता है, तो किस पद्धति का प्रयोग किया जाए- इस सम्बंध में हार्टले स्पष्ट नहीं है। वह अस्पष्ट रूप से यही कहता है कि वे नियम भी किसी सीमा तक दूसरे को सुव्यवस्थित, नियंत्रित एवं प्रभावित करते हैं तथा एक-दूसरे का अर्थ निर्धारित करते हैं, साथ ही, नैतिक-बोध की उत्पत्ति का जिस निश्चयात्मकता के साथ उसने अपने कथनों में निरूपण किया है. उनका समुचित आधार भी नहीं मिलता है। मनोविज्ञान और नीतिशास्त्र अंततोगत्वा हमें यह कहना ही होगा कि यद्यपि जीवन के नियम का निर्धारण करने सम्बंधी अपने प्रयासों में हार्टले स्पष्टतया ईमानदार रहे हैं। उनका सुव्यवस्थित उत्साह, अपनी पद्धति एवं व्याख्या-सम्बंधी कमियों के बावजूद भी, उनकी मनोविज्ञान में अभिरुचि उत्पन्न करता है, तथापि वे उसका उपयोग उचित आचरण की प्रभावकारी कसौटी के प्रश्न पर नहीं कर पाए हैं। इस प्रश्न पर उनकी व्याख्या अस्पष्ट है। वे व्याख्याएं उस विश्वास के कारण दूषित हो गई है, जो कि उन्हें इस समस्या की कठिनाइयों का मुकाबला करने से बचाता है। ऐसी ही एक कमी एडम स्मिथ के ग्रंथ में भी देखी जाती है। जब एडम स्मिथ मनोवैज्ञानिक-विश्लेषण के माध्यम से नैतिक सिद्धांतों के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस युग की आंग्ल-नैतिक-चिंतनधारा की बौद्धिक-शक्ति कठोरतापूर्वक नैतिकता की दिशा में मुड़ने की अपेक्षा मनोविज्ञान की दिशा में मुड़ने की एक सामान्य प्रवृत्ति रखती है। वस्तुतः, ह्यूम के चिंतन में तो नीतिशास्त्र का मनोविज्ञान में विलयन इतना पूर्ण हो गया कि वह उसे भाषा के भ्रांत प्रयोग की दिशा में ले
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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