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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/200 एडम स्मिथ - दोनों की व्याख्या करने की पद्धति की तुलना हार्टले की पद्धति के निषेधात्मक रूप से की जा सकती है। हार्टले (1705-1757 ई.) हार्टले की पुस्तक ‘आब्जरवेशंस आन मेन (1749)' ह्यूम की पुस्तक ‘इन्क्वायरी इन्टू दी प्रंसीपल्स आफ मारल्स' से पहले प्रकाशित हो गई थी। हार्टले का महत्त्व मुख्यतः जटिल एवं परिष्कृत संवेगों की व्याख्या के लिए प्रत्ययों के साहचर्य-नियम के मौलिक एवं व्यापक उपयोग में निहित है। वह यह बताता है कि सुख और दुःख की प्राथमिक-संवेदनाओं से साहचर्य के पुनरावर्तित एवं मिश्रित प्रभाव के द्वारा किस प्रकार 1 कल्पना, 2 आकांक्षा, 3 स्वहित, 4 सहानुभूति, 5 समाधि और 6 नैतिक-बोध के सुख-दुःखों का विकास होता है। वस्तुतः, आंग्ललेखकों में वह पहला व्यक्ति नहीं था, जिसने मानसिक घटना-चक्र के परिष्कार में साहचर्य के महत्त्व की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया हो। साहचर्य के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभावों की ओर लाक का ध्यान भी गया था और इसी प्रक्रिया को ह्यूम के तत्त्वमीमांसा सम्बंधी सिद्धांतों में मुख्य केंद्र बनाया गया था। ह्यूम ने अपने न्याय एवं दूसरे कृत्रिम सद्गुणों की विवेचना में इस सिद्धांत का उपयोग किया है। इसके कुछ वर्ष पहले में हचीसन के नैतिक एवं परोपकारी आवेगों में उपस्थित निष्कामता के प्रमाण को स्वीकार करते हुए यह बताया कि (ज्ञान या यश की इच्छा तथा पढ़ने, शिकार करने या वृक्षारोपण के आनंद के समान ही) ये सद्गुण भी आत्म-प्रेम से ही साहचर्य की शक्ति के द्वारा व्युत्पन्न होते हैं, किंतु नैतिक मनोविज्ञान में साहचर्य सिद्धांत का गहन एवं व्यवस्थित उपयोग सर्वप्रथम हार्टले की रचना में पाया जाता है। वही पहला व्यक्ति है, जो इस बात से पूर्ण आश्वस्त है कि साहचर्य में मानसिक-घटना-चक्र की मात्र सम्बद्धता के स्थान पर एक ऐसे अर्द्ध-रासायनिक मिश्रण को उत्पन्न करने की शक्ति है, जो कि उसके घटकों के आभासी मिश्रण से भिन्न होता है। प्राथमिक रूप से उसका सिद्धांत मनोवैज्ञानिक है और मन एवं शरीर में पूर्ण संवादिता को स्वीकार करता है। वह यह बताता है कि संवेदना के ग्राहक अंग में उत्पन्न होने वाले प्राथमिक-कम्पनों से किस प्रकार मजा- द्रव्य में मिश्रित प्रकम्पनों का निर्माण होता है और इसके परिणामस्वरूप सातत्यपूर्वक या अव्यवस्थित अनुक्रमों में संवेदनाओं की पुनरावृत्ति किस प्रकार लघु चित्रों के संसक्त समूहों को या प्राथमिक भावना-चिह्नों को उत्पन्न करने की प्रवृत्ति रखती है, जो वस्तुतः जटिल, किंतु सरल प्रतीत होने वाले संवेगों
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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