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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/199 मूल्यवान् उपचार नैतिकता के सामान्य नियमों के रूप में प्रकृति के द्वारा प्रस्तुत किया गया है, किंतु नैतिकता के इन सामान्य नियमों को मौलिक प्रतिमज्ञान नहीं माना जा सकता है, क्योंकि अंततोगत्वा ये हमारे उन अनुभवों पर निर्भर हैं, जिन्हें विशेष अवस्थाओं में हमारी नैतिक-शक्ति अथवा अच्छाई और औचित्य का हमारा प्राकृतिक-बोध पसंद या नापसंद करता है। इन (प्राकृतिक) सामान्य नियमों के प्रति निष्ठा को ही कर्त्तव्य-बोध कहा जाता है। इस निष्ठा के बिना कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जिसका चरित्र प्रसन्नता की उस असमानता पर आश्रित रह सकेगा कि असमानता से सभी व्यक्ति युक्त हैं। वस्तुतः, एडम स्मिथ तो यहां तक कहना चाहता है कि सामान्य नियमों के प्रति वह निष्ठा ही केवल एकमात्र ऐसा सिद्धांत है, जिसके द्वारा मानव जाति के अधिकांश व्यक्ति अपने कार्यों के निदर्शन में सक्षम होते हैं, किंतु इस निष्ठा को एडम स्मिथ के सामान्य सिद्धांत के साथ संगति बैठा पाना कठिन है। विशेष रूप से, अनेक सदगणों के सम्बंध में हमारे सामान्य नियम अधिकांशतया इतने अपूर्ण एवं ढीले-ढाले होते हैं कि हमारे आचरण को किन्हीं संक्षिप्त सिद्धांतों की अपेक्षा किसी विशेष रुचि से निदर्शित होना पड़ता है, यद्यपि वह मानता है कि न्याय के नियम उच्चतम कोटि की पूर्णता रखते हैं, ताकि अपेक्षित किसी भी बाह्य-कार्य का निर्धारण सर्वाधिक सत्यता के साथ कर सके। एडम स्मिथ हमें यह विश्वास दिलाने का प्रयास भी करते हैं कि नैतिकता के सामान्य नियमों को ठीक ईश्वरीय-नियमों के रूप माना जाना चाहिए और अंतरात्मा अर्थात् कल्पित निष्पक्ष दृष्टा की आवाज को यदि हम अध्यवसाय एवं निष्ठापूर्वक ध्यान से सुन सकें, वह हमें कभी धोखा नहीं देगी, किंतु उसका यह सिद्धांत इन निष्कर्षों के लिए कोई अकाट्य तर्क नहीं दे पाता है। ह्यूम और एडम स्मिथ के सिद्धांतों को एक सीमा तक साथ साथ लेने पर हमें नैतिक स्थाई भाव के मूल स्रोत की उस व्याख्या का पूर्वानुमान हो जाता है, जो कि उपयोगितावादी-सम्प्रदाय में अभी-अभी तक प्रचलित थी, लेकिन ह्यूम और एडम स्मिथ - दोनों ही नैतिक स्थाई भाव की जटिलता का कम मूल्यांकन करने की गलती करते हैं। साथ ही, वे इस बात को अस्वीकार करने की गलती भी करते हैं कि अंतर्दर्शनात्मक रूप से समीक्षा करने पर नैतिक स्थाई भाव दूसरों के आवेगों एवं भावनाओं के साथ मात्र सहानुभूति से भिन्न है। यद्यपि ये नैतिक स्थाई भाव उससे उत्पन्न हो सकते हैं, ये जटिल एवं मिश्रित हैं, ये जटिल इसलिए हैं कि इन्हें सीधे-सीधे सहानुभूति के सरल घटक में विश्लेषित नहीं किया जा सकता है। इस दृष्टि से ह्यूम और