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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/193 होने की प्रवृत्ति के बिना भी उनके धारक व्यक्ति को आकर्षित करते है, और दूसरे व्यक्ति में इनके द्वारा प्रदत्त तात्कालिक सुख के प्रति सहानुभूति के द्वारा अनुमोदन की उत्तेजना प्रदान करते हैं। चाहे कोई गुण कितना ही उपयोगी हो, परोपकार के रूप में वह अंशतः अपनी प्रत्यक्ष अनुमोदनशीलता के द्वारा ही मान्य किया जाता है। जैसा कि निंदा का मृदुल तरीका में देखा जाता है, जिसमें जब कोई व्यक्ति सीमा उल्लंघन कर दूसरे का बहुत अधिक ध्यान रखता है, तो हम कहते हैं कि यह बहुत ही भला है ऐसी स्थिति में परोपकार उपयोगी का विरोधी होता है और हम उसकी निंदा करने से बाज नहीं आते हैं, किंतु उसकी क्रियाशील सदयता (कोमल हृदयता) मन को इतना जीत लेती है कि हम उसकी आलोचना इस प्रकार करते हैं कि उस आलोचना के अंतर में अनेक प्रशस्तियों की अपेक्षा भी अधिक समादर भाव होता है। ___ पुनश्च, उपयोगिता जो कि अनुमोदन का स्रोत है, आवश्यक रूपसे लोकहित नहीं है। वस्तुतः, अपने सामान्य सिद्धांत के लिए ह्यूम के मौलिक एवं सूक्ष्म तर्क उन गुणों से सम्बंधित हैं, जो उनके धारक के लिए प्रत्यक्ष रूप से उपयोगी होने से पसंदगी के विषय है। वह कहता है कि संसार का सर्वाधिक मानवद्वेषी व्यक्ति, चाहे वह कैसे भी अनिष्टकर संदेह से युक्त होकर सद्गुणों को एक पवित्र ढोंग मानते हुए उन्हें अस्वीकार करे, वह भी न तो सावधानी, साहस, परिश्रम, सादगी एवं विवेकबुद्धि आदि गुणों के अनुमोदन से वस्तुतः इंकार करता है और न संयम, मद्रता, धैर्य, अध्यवसायिता, विचारशीलता, युक्तिसंगत-मार्गदर्शन, सजगता, शीघ्र ही निर्णयक्षमता (उत्पाद-बुद्धि) अभिव्यक्ति की सुविधा आदि के महत्त्व को ही अस्वीकार करता है। इससे यही प्रमाणित होता है कि इन विशेषताओं की सद्गुणात्मकता मुख्यतया हमारी दृष्टि में इनमें अपने धारक के हितों की पूर्ति करने की प्रवृत्ति को देख पाने के कारण ही है, इसलिए मानव द्वेषी व्यक्ति भी इनकी प्रशंसा में वस्तुतः उसी निःस्वार्थ सहानुभूति को ही अभिव्यक्त करता है, जिसके अस्तित्व के सम्बंध में शंका करता है। जहां तक नैतिक शक्ति को क्रियान्वित होने की अपेक्षा से विमर्शात्मक या चिंतनपरक माना जाता है, वहीं तक इसमें वस्तुतः वहां दृष्टिबिंदु प्रस्तुत है, जिससे ह्यूम इसे मुख्यतया देखता है। वह भी हचीसन के समान बाह्य कर्त्तव्यों की रूपरेखा देने का प्रयत्न नहीं करता है और न उन विभिन्न गुणों में, जिनको नैतिक भावना अनुमोदन करती है के नैतिक मूल्यों में श्रेणी या क्रम का निर्धारण करता है। हम यह भी देखते हैं कि सद्गुणात्मक आचरण की वास्तविक निष्कामता के प्रश्न पर भी ह्यूम का दृष्टिकोण
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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