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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/192 उसके निर्माण लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए, ताकि ऐसी उपयोगी आदतों एवं कौशल को प्रोत्साहन दिया जा सके। इसी प्रकार इसे कौन नहीं मानता है कि उपयोगिता के उद्देश्य के लिए सम्पत्ति का उत्तराधिकार व्यक्ति के बच्चों को एवं उसके सम्बंधियों को दिया जाना है चाहिए यह बात भी कौन नहीं मानता है कि सहमति से सम्पत्ति का हस्तांतरण किया जा सकता, जिससे वाणिज्य एवं व्यापार का संवर्द्धन हो, जो कि मानव जाति के लिए बहुत ही उपयोगी है, साथ ही यह कि संविदाओं एवं प्रतिज्ञाओं का सावधानीपूर्वक पालन किया जाए ताकि पारस्परिक विश्वास एवं निष्ठा बनी रहे। जिससे मानव जाति के सामान्य हितों का बहुत अधिक विकास किया जा सकता है। इसके विपरीत यदि हम इन बातों को छोड़कर चलें, तो सभी या अधिकांश सम्पत्ति या न्याय सम्बंधी विधियां केवल अस्वाभाविक, सनकपूर्ण और अंधविश्वासों से अधिक प्रतीत नहीं होंगी। वस्तुतः, कभी कभी विशेष नियम विवेकाधीन होते हैं, क्योंकि जब कभी समाज के हितों के लिए किसी नियम की आवश्यकता होती है, तो हम यह तय नहीं करते हैं कि कौन-सा विशेष नियम बनाया जाना चाहिए, अपितु उस परिस्थिति में कुछ सरसरी तौर से कुछ तत्त्व ले लिए जाते हैं, ताकि उस अस्पष्टता तथा तटस्थता से बचा जा सके, जिसके कारण सतत रूप से मतभेद उठ सकते हैं। केवल इसी रूप में हम नागरिक नियमों में होने वाले उन परिवर्तनों की उचितता को सिद्ध कर सकते हैं, जो कि प्राकृतिक न्याय के नियमों को प्रत्येक समाज की विशेष सुविधाओं के अनुसार विस्तृत एवं सीमित करते हैं तथा परिष्कृत एवं रूपांतरित करते है, ह्यूम यह मानता है कि उसके सिद्धांत के सम्बंध में उस सुस्पष्ट तथ्य के आधार पर संदेह हो सकता है कि हम अन्याय की तब भी निंदा करते हैं जब कि हम उसके हानिकर परिणाम के सम्बंध में प्रत्यक्ष रूप से सजग नहीं होते हैं, किंतु वह यह मानता है कि इसकी व्याख्या शिक्षा एवं अर्जित आदतों के प्रभाव के आधार पर की जा सकती है। वह यह भी कहता है कि किन्हीं स्थितियों में विचार सहचर्य के द्वारा वे सामान्य नियम जिनके आधार पर हम प्रशंसा या निंदा करते हैं, जब पहली बार बनते हैं, तो उपयोगिता के सिद्धांत से भी अधिक व्यापक होते हैं । ___यद्यपि ह्यूम की दृष्टि अनेक महत्वपूर्ण सद्गुण का मूल आधार एवं दूसरे व्यक्तियों से सम्बंधित अच्छाइयों के विशेष भाग का मूल स्रोत उपयोगिता ही है फिर भी उपयोगिता नैतिक भावनाओं का पूर्ण आधार नहीं है। प्रफुल्लता, भद्रता, विनम्रता आदि ऐसे दूसरे भी मानसिक गुण हैं, जो कि किसी उपयोगिता या शुभ में सहायक
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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