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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 190 के निर्माण के स्वाभाविक ढंग के सम्बंध में सामाजिक संविदा के सिद्धांत को स्वीकार करता है और यह कि दूसरे के साथ मिलाकर कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। दोनों के प्रति आबंध (बाध्यता) का हमारा बोध समान रूप से समाज के लिए उनकी महत्वपूर्ण उपयोगिता के आधार पर स्थित है। नैतिक आबंध सम्बंधी इस निष्कर्ष में ही हचीसन और ह्यूम" के नैतिक सिद्धांतों का मौलिक अंतर निहित है, हचीसन आनंद की प्राप्ति में सहायक होने की क्षमता को ही मौलिक या वास्तविक शुभत्व का प्रमापक मानकर शेफ्ट्सबरी के उस दृष्टिकोण का समर्थन करता है जिसके अनुसार मौलिक अनुमोदन के वास्तविक विषय अभिरुचि है न कि कार्य का परिणाम इसके साथ ही वह कार्य उसके अपने वैयक्तिक गुणों में परोपकार की भावना से युक्त है या नहीं? यही बात आवश्यक रूप से हमें कार्यों या गुणों की उपयोगिता या विनाशक प्रवृत्ति के सम्बंध में समुचित निर्देश देगी, किंतु वह केवल किसी बात के नैतिक अनुमोदन या निंदा के लिए पर्याप्त नहीं है। ह्यूम बताता है कि किसी अपराध का सारतत्व कभी भी किसी ऐसे रूप में नहीं है कि उसे बुद्धि के द्वारा खोजा जा सकेद्ध उदाहरणार्थ- जब कृतघ्नता ( भलाई के बदले बुराई) की निंदा करते हैं, तो केवल अच्छाई और बुराई का विरोध ही हमारी अस्वीकृति का आधार नहीं है। यदि ऐसा हो, तो हम बुराई के बदले भलाई को भी समान रूप से अस्वीकृत करते हैं। बुद्धि के द्वारा किसी कार्य की परिस्थितियों एवं परिणामों का निश्चय कर लिया जाता है, तो मन उसके सम्बंध में कोई नैतिक निर्णय लेता है, किसी-किसी नए तथ्य या सम्बंध को खोजने के लिए अग्रसर नहीं होता है। अक्सर होता यह है कि उन ज्ञान सम्बंधों और परिस्थितियों पर ध्यान देने से मन में श्रद्धा या तिरस्कार अनुमोदन पसंदगी या नापसंदगी के भाव की अनुभूति होती है। यह मन में ठीक वैसे ही होता है, जैसे प्राकृतिक सौन्दर्य बोध में होता है। यद्यपि किसी सुंदर वस्तु की सुंदरता उसके अंगों की अनूपता, सम्बंध एवं स्थितियों पर निर्भर होती है, फिर भी कोई वस्तु किसी समुचित रूप से परिष्कृत संवेदनशील बौद्धिक मनस् के समक्ष प्रस्तुत की जाती है, तो वह सुंदर वस्तु किसी अंग या घटक का परिणाम न होकर उसकी समग्रता का परिणाम होती है। प्रश्न यह है कि किस प्रकार की अनुभूति नैतिक अनुमोदन का वास्तविक मूलाधार है? दार्शनिकों ने इस मूलाधार को पूरी तरह आत्मप्रेम में खोजने का प्रयास किया है, किंतु ह्यूम मानता है कि इस दृष्टिकोण को हमारी नैतिक भावनाओं के संदर्भ
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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