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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/178 शेफ्ट्सबरी के नैतिक दर्शन की विशेषताएं आंग्ल नैतिक चिंतन के इतिहास में एक नई दिशा का सूचक है। उसके अनुयायी नैतिक विचारकों की पीढ़ी में अमूर्त बौद्धिक सिद्धांतों के सम्बंध में विचार गौण हो गया था और मानवीय भय के आनुभविक अध्ययन और मनोजन्य विभिन्न आवेगों एवं स्थाई भावों की वास्तविक भूमिका के निरीक्षण ने उसका स्थान ले लिया था, यद्यपि यह आनुभविक मनोविज्ञान पूर्ववर्ती लेखकों के द्वारा भी वस्तुतः उपेक्षित नहीं था। दूसरे कुछ विचारकों में मूर ने अपने भावावेशों की विवेचना में देकार्त का अनुसरण किया था और लाक के निबंधों ने भी इसी दिशा में उससे भी अधिक दृढ़ता से प्रयास किया था, तथापि शेफ्ट्सबरी वह प्रथम नीतिवेत्ता है, जिसने मनोवैज्ञानिक अनुभूतियों को स्पष्ट रूप से नीतिशास्त्र का आधार बनाया था। उसके सुझावों का हचीसन के द्वारा एक पूर्ण विवेचित नैतिक दर्शन के रूप में विकास हुआ। साथ ही, अपरोक्ष रूप से हचीसन के माध्यम से इन विचारकों ने ह्यूम के चिंतन को भी प्रभावित किया था और इस प्रकार ये अपने परवर्ती विचारकों से भी सम्बंधित हो गए। इसके अतिरिक्त शेफ्ट्सबरी की मुख्य युक्तियों को बटलर के द्वारा भी ग्रहण किया गया था, यद्यपि ये युक्तियां उस समर्थ और सजग प्रज्ञा की समालोचना में बिना किसी महत्वपूर्ण संशोधनों और योग के सफ ल नहीं हो सकी। दूसरी ओर, शेफ्ट्सबरी का नैतिक आशावाद वस्तुतः तार्किक न होते हुए भी व्यापक प्रभावकारी है और उस प्राकृतिक धर्म से सम्बंधित था, जिसके लिए कि ईसाइयत अनावश्यक है और जिसने उसे बुरा भी बताया है। शेफ्टस्बरी के इस नैतिक आशावाद पर परम्परागत धर्मशास्त्रियों और स्वतंत्र आलोचकों दोनों ने ही आक्रमण किया। मेण्डीव्हिले इन स्वतंत्र आलोचकों में मेण्डीव्हिले का नाम भी पाते है।मेण्डीव्हिले एक विशिष्ट व्यक्ति हैं, यद्यपि वे प्रातिनिधिक व्यक्ति नहीं हैं। उन्हें मुश्किल से ही एक नीतिवेत्ता कहा जा सकता है। यद्यपि उनके नीतिविरोधी वक्तव्यों में बाह्य संगति भी नहीं है, फिर भी उनमें दार्शनिक विचक्षणता की किसी सीमा तक उपस्थिति से इंकार करना भी असम्भव ही है। वे मानते हैं कि सद्गुण विशुद्ध रूप से अस्वाभाविक या कृत्रिम हैं, (जहां कि वे एक दिखावे से अधिक न हो)। किंतु वे इस सम्बंध में दृढ़ निश्चयी नहीं है। ये सद्गुण उन क्षुधाओं और आवेगों के लिए एक निरर्थक बंधन है, जो कि समाज के लिए लाभदायक हैं, किंवा ये सद्गुण उन राजनीतिज्ञों का एक धोखा
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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