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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 142 शती के पूर्वार्द्ध में होता है। बर्नाडे के अनुसार, जो ईश्वरीय सत्य को पाना चाहता है ईसाई को प्रेम और विनम्रता के द्वारा उच्च आध्यात्मिक जीवन के सोपानों पर चढ़ना होगा। प्रेम और विनम्रता के अनेक स्तरों पर उसे आरोहण करना होगा, उसके बाद ईश्वरीय सत्य के तर्कमूलक चिंतन द्वारा उसे अंतरात्मक मनन की ओर आगे बढ़ना होगा। ध्यान के विषय के प्रति भाव-विभोर तन्मयता की अवस्था के उन क्षणों में उसे उस पूर्ण आत्म विस्मरण (अहं के पूर्ण विगलन) का अस्थाई पूर्वाभ्यास होगा, जिसे कि वह उच्च आत्मा इस जीवन के बाद उपलब्ध करेगी। इसी प्रकार, सेन्ट विक्टोर के ह्यूगो के अधिक व्यवस्थित एवं पूर्ण विकसित धर्म-दर्शन में भी यह माना गया है कि उस ईश्वरीय कृपा के द्वारा ही वह आत्मिक चक्षु खुलता है, जिससे कि ईश्वर का उसके यथार्थ स्वरूप में दर्शन होता है, जो मनुष्य के ईश्वर - प्रेम को उस अवस्था तक उठा देता है, जिसमें व्यक्ति अपने को और अपने पड़ोसी को मात्र ईश्वर प्रेम करता है। आत्मा के बाह्य चक्षुओं के द्वारा वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण और अंतर्वस्तु (अंतःप्रज्ञा) के द्वारा आत्म-दर्शन ही ईश्वरीय सत्य और शुभता के सहज बोध की उपलब्धि के सोपान हैं। at-a-RT (1221-1274) आध्यात्मिक विकास की प्रगति की प्रक्रिया को बोनबेन्धरा के द्वारा अधिक विस्तृत एवं प्रभावकारी ढंग में प्रस्तुत किया गया। उसके विवेचन में पाण्डित्यवाद के साथ संगतिपूर्ण समन्वय के रूप में पाए जाने वाले परम्परागत रहस्यवाद को नमूने के रूप में हमनें चुना है। बोनबेन्धरा के दृष्टिकोण के अनुसार मन को छः स्तरों के द्वारा अंतिम वीजन की ओर आगे बढ़ना चाहिए। सर्वप्रथम उसे वजन, संख्या, माप आदि के आधार पर वर्गीकृत एवं विभाजित वस्तुओं के बाह्य-जगत् में ईश्वर की प्रज्ञा, शक्ति और शुभता का दर्शन करना चाहिए। इस विश्व के घटनाक्रम के संचालन में उस ईश्वर की अनन्त प्रज्ञा परिलक्षित होती है। इस विश्व की रचना से उस ईश्वर की अनन्तशक्ति का हमें बोध होता है और उसके अंतिम न्याय के द्वारा उसकी पूर्ण न्यायिकता प्रकट होती है। इसी प्रकार सृष्ट वस्तुओं के क्रम में शुद्ध सत्ता के जीवन और जीवन से बुद्धि के विकास द्वारा भी हमें उस ईश्वर का दर्शन करना चाहिए। दूसरे हमें जगत् से मनुष्य के सम्बंध का चिंतन करना चाहिए। एक ओर हमें यह देखना चाहिए कि बाह्य वस्तुएं कैसे अपनी प्रतिकृति के रूप में इंद्रियों के माध्यम से मन में प्रवेश करती है और इंद्रियों और उनके विषयों के सम्बंध की
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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