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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/141 आस्था (श्रद्धा) के लिए अधिक निश्चित थी, वही मानवीय प्रज्ञा के द्वारा सबसे कम संज्ञेय मान लिया गया। इस प्रकार ओकम के नामवाद ने, अपने -आप को जो कुछ विश्वास का विषय था, उसकी तार्किकता स्थापित करने के लिए संगतिपूर्ण नहीं है, अपितु स्वयं विश्वास की तार्किक संगति के स्थापन के लिए अपने आपको सीमित कर लिया। इसका परिणाम प्रथमतया तो शास्त्र-निष्ठा के प्रतिकूल प्रतीत नहीं हुआ, धर्म-शास्त्र ने दर्शन का उपयोग केवल उसी सीमा तक करना चाहा, जहां तक कि वह उसके विरोध से रहित हो। किंतु यह परिवर्तन पाण्डित्यवाद के पतन का भी कम कारण नहीं था। यद्यपि (धर्म में) द्वन्द्वात्मक पद्धति (तार्किक पद्धति) का काफी स्थान हो सकता था। फिर भी उसके लिए जो कार्य निश्चित किया गया था, वह उच्च प्रकार की दार्शनिक प्रज्ञा के प्रति निष्ठा को अभिव्यक्त नहीं करता है। इस प्रकार थामस एक्वीनास का कार्य निश्चित ही मध्ययुगीन दर्शन के लिए विशिष्ट रचनात्मक प्रयासों का श्रेष्ठतम परिणाम था। वस्तुतः, यह प्रयत्न असफलताओं को पूरी तरह समाप्त करने के लिए ही था, क्योंकि इसने शास्त्र, धर्माध्यक्षों, धर्मसंघ और धर्म-दर्शन के द्वारा प्रदत्त असंगतिपूर्ण सामग्री के आधार पर एक संगतिपूर्ण दर्शन के स्थापन का प्रयास किया। थामस एक्वीनास के ग्रंथों में जो भी दार्शनिक गुण मिलते हैं, वे उनकी पद्धति के कारण हैं, न कि उनके निष्कर्षों के कारण, तथापि उनका कैथोलिक चर्च पर प्रभाव चिरकालीन और महान् है और परोक्ष रूप से प्रोस्टेस्टन्ट्स पर भी है। विशेष रूप से इग्लैण्ड के हूकर की एकडेसी इथिकल पोलिटी नामक प्रथम प्रसिद्ध पुस्तक एक्वीनास की सूमाथियोलाजिया नामक पुस्तक की ऋणी है। मध्ययुगीन रहस्यवाद हम पाण्डित्यवाद के साथ ही साथ आंशिक रूप में पण्डितों के तार्किक द्वन्द्वात्मक संघर्ष और उनके पाण्डित्यपूर्ण श्रम के विरोध में , उनके नीति-धर्म के मुख्य सिद्धांतों से अधिक समानता रखते हुए भी ईसाई चर्च में रहस्यवाद का विकास देखते हैं। रहस्यवाद से हमारा तात्पर्य उस प्रवृत्ति से है, जो अंतर्बोध, समाधि की अवस्था या ईश्वर के दर्शन की उपलब्धि के लिए नैतिक प्रयत्नों और बौद्धिक प्रयासों को गौण कर देती है। इस विचार दृष्टि का आंशिक कारण विभिन्न धाराओं के माध्यम से आने वाला प्लेटोवादी और नवप्लेटोवादी चिंतन का प्रभाव था, किंतु स्पष्टतया ईसाई धर्म संस्था में इसका विकास क्लेरव्यावस के बर्नाडे और सेन्ट विक्टोर के ह्यूगो के चिंतन से बारहवीं
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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