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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/130 स्वीकार कर पश्चाताप करने वालों के उपयोग के लिए पश्चाताप- पुस्तिकाओं का प्रचलन पाया जाता है। ये पश्चाताप पुस्तिकाएं आंशिक रूप से परम्परागत रीतिरिवाज पर और आंशिक रूप से धर्मसमाजों के सुव्यक्त आदेशों पर आधारित थीं। प्रारम्भ में वे मात्र पापों की ऐसी सूचियां थीं, जिनमें प्रत्येक पाप के लिए समुचित ईश्वरीय दण्ड' का विधान था, किंतु क्रमशः अंतरात्मा की समस्या पर विचार विमर्श हुआ एवं निर्णय लिए गए और इस प्रकार धर्माधर्म विचार या किंकर्तव्यमीमांसा के लिए एक आधार प्रस्तुत किया गया, जो कि 14 वीं और 15 वीं शताब्दी में अपने पूर्ण विकास पर पहुंचा। ईश्वरीय न्यायशास्त्र का यह विकास धर्माध्यक्षीय नियंत्रण का एक सशक्त प्रयत्न था और सम्भवतया मध्ययुग के अर्थ-अराजकता के प्रारम्भिक काल में नैतिक व्यवस्था बनाए रखने के चर्च के महान कार्य की पूर्ति का अपरिहार्य अंग था, किंतु इसमें नैतिकता के अनुचित बाह्य एवं वैधानिक (नियमवादी) दृष्टिकोण का प्रश्रय देने की भयंकर प्रवृत्ति निहित थी, तथापि इस प्रवृत्ति का संतुलन आगस्टिन के अंतर्मुखत्म के ज्योतिर्मय विचार के द्वारा सतत् रूप से किया जाता रहा। यही अंतर्मुखता का तथ्य यह है कि व्यवस्थित अनुशासन की आवश्यकता के इस युग में चर्च स्वयं ही आंशिक रूप से क्रूर (जंगली) हो गयाथा। पश्चिमी साम्राज्य के पतन के बाद और पाण्डित्यवाद के उदय होने के पहले दार्शनिक अंधत्व के युग में ग्रेगोरी महान (मृत्यु 604) केमारलिया सेविलेके ईसीडोर (मृत्यु 636) केसेन्टन्शिया तथा एल्क्यून (मृत्यु 804) हरवन्स म्यूरस (मृत्यु 856) आदि लेखकों के ग्रंथों के माध्यम से मंद एवं क्षीण रूप में पाण्डित्यवाद के युग तक आया था। पाण्डित्यवादी-नीतिशास्त्र पाण्डित्यवादी दर्शन के समान ही पाण्डित्यवादी नीतिशास्त्रभी थामस एक्विना की शिक्षाओं में अपने पूर्ण एवं विशिष्ट स्वरूप को प्राप्त करता है किंतु, इस महान् विचारक के नैतिक-दर्शन का संक्षिप्त विवेचन करने के पूर्व यह उचित होगा कि चिंतन एवं विमर्श-प्रक्रिया के उन विभिन्न मुख्य स्तरों पर विचार कर लें, जिनके द्वारा हमें चिंतन का यह स्तर प्राप्त हुआ। जान्स एरीजेना (810-877) हमें अपना विवेचन मध्ययुग के प्रारम्भिक एवं महान दार्शनिक जान्स स्काट एरीजेना से प्रारम्भ करना होगा। यद्यपि यह सही है कि केवल पाण्डित्यवाद के व्यापक अर्थ की दृष्टि से उन्हें पाण्डित्यवादी कहा जा सकता
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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