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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/120 सम्पत्ति का यह निर्बाध वितरण ईसाईयों के पारस्परिक भाईचारे से उत्पन्न प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं था। यद्यपि इस दृष्टिकोण के महत्त्व ने इसे अपनाने की भावना उत्पन्न की, जिसे अनेक यूरोपीय भाषाओं में चेरिटी (दान) के सामान्य नाम से जाना जाता है। यह आंशिक रूप से सम्पत्ति के परिग्रह से सम्बंधित उन आध्यात्मिक खतरों को देख लेने के कारण हुआ, जिसका कि ईसा ने अपनी वाणी में संकेत दिया था। इन दोनों कारणों से ईसा के पट-शिष्यों के युग में जिस साम्यवाद का प्रयास किया गया था, वह प्रारम्भिक और मध्ययुगीन चर्च में भी ईसाई समाज के एक आदर्श के रूप में मान्य रहा था अथवा विकसित होता रहा था। यद्यपि ईसाई जगत् की सामान्यबुद्धि इसके व्यावहारिक संशोधन के लिए समय-समय पर सुझाव प्रस्तुत करती रही। यह बात व्यापक रूप से स्वीकार की गई कि मात्र सम्पत्ति का स्वामित्व एक ईसाई को उसके उपभोग का नैतिक अधिकार प्रदान नहीं करता है, उपभोग का अधिकार तो मात्र वास्तविक आवश्यकता से ही मिलता है, यद्यपि जब चर्च ने इस आवश्यकता शब्द के साथ समझौता किया, तो साधारण ईसाई के लिए इस आवश्यकता का निर्धारण सामान्यतया सामाजिक वर्ग अथवा व्यावसायिक वर्ग, जिसके कि सदस्य हैं, के रीतिरिवाजों के आधार पर किया गया। ईसा के उस धर्मादेश कि जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे बेच दो और गरीबों को बांट दो, का पूर्णतया पालन कभी भी सामान्यतया स्वीकार नहीं किया गया। यह ध्यान रखना चाहिए कि फिर भी दानशीलता पर जोर देकर ईसाई धर्म ने उस कर्त्तव्य को मात्र सार्वभौमिक बनाया है, जिसे यहूदी धर्म ने कुछ चुने हुए लोगों तक सीमित करके सम्पूर्ण हार्दिकता के साथ स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था। यही बात शोषण के निषेध के सम्बंध में भी कही जा सकती है, जिसे चर्च ने आधुनिक युग तक भी कुछ विशेषाधिकारों और सुविधाओं के साथ मान्य रखा था। विशेष अर्थ में पवित्रता पुनः, ईसाई धर्म में जिस कठोरता के साथ विभिन्न लिंगों के लैंगिक सम्बंधों की अनियमितताओं का निषेध किया गया था, वह भी उसने यहूदी धर्म से ही पाया था। यद्यपि नवीन धर्म ने इसे मान्य रखने तथा वैवाहिक सम्बंधों के स्थायित्व देने की दिशा में एक कदम आगे ही बढ़ाया और मात्र बाह्य शारीरिक ब्रह्मचर्य के स्थान पर हृदय की पवित्रता पर अधिक बल दिया।
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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