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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/119 और मानव-समाजों को एक दूसरे से निकट लाने के लिए पारस्परिक अनुग्रह के महत्त्व को बताते हैं, तथापि अरस्तू के विशेष सद्गुणों के आकारिक विवरण में विधायक परोपकारिता की केवल उदारता के प्रत्यय के अंतर्गत ही देखा जा सकता है। इस रूप में इसकी अच्छाई को आत्मसम्मान के लिए किए गए शालीन अपव्यय से मुश्किल से ही अलग किया जा सकता है। दूसरी ओर सिसरो बाह्य कर्त्तव्य सम्बंधी अपने ग्रंथ में दूसरे मनुष्यों के लिए अपनी विधायक सेवाओं को प्रस्तुत करने को सामाजिक कर्त्तव्य के एक महत्त्वपूर्ण विभाग के रूप में वर्गीकृत करता है, जबकि परवर्ती स्टोइकवाद में विश्वमैत्री और मनुष्यों के पारस्परिक स्वाभाविक दायित्वों की मान्यता को इतने भावावेश के साथ प्रस्तुत किया गया है कि उसे ईसाई परोपकारिता से कठिनाई से ही अलग किया जा सकता है। स्टोइकवाद का मानव-जाति के प्रति यह सम्मान मात्र एक सिद्धांत ही नहीं था (वरन् व्यवहार में भी उसे स्थान दिया गया था)। आंशिक रूप से स्टोइक एवं अन्य ग्रीक दर्शनों के प्रभाव से और आंशिक रूप में मानवीय सहानुभूति के सामान्यतया व्यापकता के आधार पर रोमन साम्राज्य के विधानों में प्रथम तीन शताब्दियों तब स्वाभाविक न्याय और मानवीयता की दिशा में एक दृढ़विकास दिखाई देता है। इसी प्रकार की प्रगति सामान्य नैतिक मान्यताओं में भी देखी जाती है, तथापि इस परोपकारिता विचार का चरम बिंदु ईसाई दानशीलता में ही उपलब्ध होता है। ईसाई धर्म के द्वारा सामाजिक कर्तव्यों के क्रियान्वयन के लिए दी गई इस अत्यधिक प्रेरणा ने परोपकार को ईश्वरीय सेवा का रूप दिया और पवित्रता और दयालुता में तादात्म्य स्थापित कर दिया, परंतु हम उसकी गहराई में नहीं जाते हुए मात्र उस युग में प्रचलित मान्यताओं में ईसाई धर्म के द्वारा किए गए निम्न महत्वपूर्ण परिवर्तनों का उल्लेख करेंगे- 1. बच्चों को अनाश्रित छोड़ देने की प्रथा की अत्यधिक आलोचना की और उसे समाप्त किया। 2. (मनोरंजन के लिए) तलवार आदि शस्त्रों से युद्ध करने की बर्बर परम्परा के प्रति एक प्रभावपूर्ण तिरस्कार की भावना उत्पन्न की। 3. दासता की प्रथा को तत्काल ही अनैतिक बताकर उसका दमन किया और दासों की मुक्ति के लिए साहसिक प्रोत्साहन दिया। 4. गरीबों और बीमारों के लिए दान की परम्परा को व्यापक बनाया। ईसाई धर्म और सम्पत्ति यद्यपि हमें इस चौथे प्रश्न पर विचार करना होगा। जरूरतमंद लोगों के लिए
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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