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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 116 नियमों में एक नैतिक एकीकरण की उपस्थिति को अनुभूत किया गया और इस प्रकार यहूदी धर्म के प्रति अरुचि धार्मिक एवं नैतिक भावनाओं का आधार बन गई। जब ईसाई धर्म ने मोसेस के धर्म (यहूदी धर्म) के कर्म-काण्डों को अलग कर दिया, तब धार्मिक पवित्रता के लिए नैतिकता के अतिरिक्त कोई क्षेत्र नहीं बचा था। आदर्शात्मक लक्षण के कारण यह दुर्वासनाओं के उन विशेष रूपों के नाम से स्वीकार कर ली गई, जिसे कि ईसाई धर्म अपना मुख्य कार्य मानता है' ईसाई नैतिकता के मुख्य लक्षण जब हम ईसाई-नैतिकता के विस्तार में जाते हैं, तो यह पाते हैं कि उसके बहुत से विशेष लक्षण स्वाभाविक रूप से पूर्वोक्त सामान्य लक्षणों के साथ जुड़े हुए हैं। यद्यपि उनमें से कुछ प्रत्यक्ष रूप से स्वयं ईसा के जीवन के उदाहरणों से अथवा उसकी आज्ञाओं से सम्बंधित हैं और कुछ स्पष्टतया इन दोनों से अवियोज्य रूप से सम्बंधित हैं । आज्ञाकारिता प्रथमतः हम देखते हैं कि यदि नैतिकता एक नियम के रूप में ऐच्छिक नहीं है, तो उसे मनुष्य के प्रति असंदिग्ध समर्पण से युक्त मानना होगा। इसमें स्वाभाविक रूप से ईश्वरीय सत्ता के प्रति आज्ञा-पालन को सद्गुण महत्त्वपूर्ण होगा, जिस प्रकार शुभत्व के दार्शनिक दृष्टिकोण में प्रज्ञा (ज्ञान) की उपलब्धि के रूप में आत्मनिर्धारणता एवं स्वतंत्रता का विशेष महत्त्व होता है। यह दृष्टिकोण हमें दार्शनिकों और विशेष रूप से अरस्तू के बाद के दार्शनिकों में, जहां कि नैतिकता राजनीति से पृथक् हो गई थी, देखने को मिलता है। विरक्ति पुनः, प्राकृतिक विश्व और आध्यात्मिक जगत् ( ईसाई - संघ ), जिसमें कि एक ईसाई अपना नया जन्म ग्रहण करता है, का विरोध प्रारम्भिक एवं मध्ययुगीन गिरिजा (चर्च) में था। यह विरोध न केवल स्टोइकों के समान सम्पत्ति, कीर्ति, शक्ति, यश आदि सांसारिक उपलब्धियों की अवहेलना के रूप में था, अपितु एक सांसारिक जीवन के पारिवारिक एवं सामाजिक सम्बंधों के तुलनात्मक विवेचन पर भी आधारित था। यह प्रवृत्ति चर्च के इतिहास के प्रारम्भिक काल में स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुई थी। साधारणतया मानव-समाज अस्थाई रूप से शैतान (वासनाओं) के प्रति समर्पित होता है, जिसका आकस्मिक एवं सत्वर विनाश सन्निकट था।
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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