________________ 184 188 192 प्रधिष्ठानविधानम् तदेवाजं प्रदेशे तु कम्पमेकेन पूर्ववत् / तदूर्ध्वं द्विंश(यशं) कर्ण स्यात्कम्पमेकं तदूर्ध्वके // 32 // द्वि(य)श चान्तरितं चो प्रतिं चैकांशमेव च / तदूर्ध्वं वाजनं चांशं शेषं प्रागुक्तवनयेत् // 13 // जन्मोच्चं व्यंशकं स्यात्पद्यमेकेन कारयेत् / / कन्धरं चेकभागं स्यादूचे पचं शिवांशकम् // 14 // कुम्भटुङ्गं शरांशं स्यात्पद्ममेकेन कारयेत् / तदूर्वे कम्पमेकेन कर्णमंशं तदूर्ध्वके // 65 // पद्ममेकं तदूर्ध्वं तु कपोताचं कलांशकम् / प्रालिङ्गमंशकंचैवमेकांशा(शम)न्तरितं तथा // 66 // प्रतिवाजनमेकेन कुम्भबन्धं चतुर्विधम् / गृहसिंहादिसर्वेषां(:) युक्तमा देशैः(शम)लङ्कृतम् // 17 // (कुम्भबन्धं चतुर्विधम् ) उत्सेधे तु चतुर्विशद्भागं कुर्याद्विशेषतः / जन्मोचं तु द्विभागं स्यात्तत्समं पद्यतुङ्गकम् // 18 // कम्पमेकं तदूर्श्वे तु कर्णतुझं गुणांशकम् / तदूर्ध्वं कम्पमेकांशं पट्टिकोचं कलांशम् // 6 // तदूर्वे कम्पमंशेन चाधो(ध:) पगं कलांशकम् / कर्णमेकांशकं चोर्ध्वं पद्ममेकांश(शं) कारयेत् / / 100 // तदूर्ध्वं कुम्भ(म्भ) व्यंशं स्यात्पद्ममेकांशमेव च / तदूबें निम्नमंशं स्यात्तस्योर्वे कम्पमंशकम् / / 101 / / तदूर्ध्वं तत्समं निम्नमूचे प्रतिमेकांशमेव च / तदेव पूर्ववदुत्सेधं पद्मकर्ण विशेषतः // 102 // मध्ये कुम्भं कलांशं स्यात्तस्योर्चे एकाश(शं) निम्नकम् / शषं प्रागुक्तवत्कुर्यात्तद्भागेन विशेषतः // 103 // द्विभार्ग जन्मतुङ्गं स्यात्पमतुङ्गं तु तत्समम् / निम्नमेकं तदूचे तुकुम्भतुङ्गं कखांशकम् / / 104 // 196 200 204 208