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[ મહામણિ ચિંતામણિ
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अप्पण केवलकारणिहिं चित्ति धरंतउ खेउ । वीरि भणेउ म म अधृति धरि, होस्यइ तुल्ला बेउ
चतुर्थ भाषा ॥
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॥४८॥
॥४६॥
॥५०||
॥५१॥
॥५२॥
मगहेसर सेणियपमुह सयल नरेसर वंदि पाउ । भवियलोय आणंद करो, महिमंडलि विहरइ मुणिराउ नाणगुणिहिं केवल तुलए, सरलपणइ पुण बाल विसेषइं । गोयमगुरु गुरुसमरसभरिउ, राय रंक समद्रेठिं पेखइ बालक छह वरिसहंतणउ अइमुत्तउ गुरु गोयम रासे । देषी प्रतिबोधिउ लियए, संजम वीर जिणेसर पासे त्रिविढि वियारिय सीहजिउ, विप्र जुउ जिणवर दीठइ नासइ । गोयमगुरु करुणानिलउ, तेहइ मनि आणंद उल्लसइ वीरवयणि नियदोसलवो जाणि जि आणंदु जाइ खमावइ । तिहं मुणि अजवगुणतणउ, केवल विणु कोइ पार न पांवइ सावत्थिय पुरवर मिलिय बिहु परियरिय गुरुगोयम–केसी । धरम विचारु करंति तहिं सीसहं संसय-भंजण-रेसी केसी जि जि पृच्छ करइ गौयमु तिहं तिहं अरथु] कहेइ । तउ केसी सीसिहिं सहिउ वीरि कहिउ व्रत-वेस वहेइ गामागरपुरपट्टणिहिं खेडमडंबहिं करइ विहारू । पावापुरि पावस रहिउ वीर जिणेसरसिउं गणधारू वस्तुः गुणिहिं गरुवउ गुणिहिं गरुवउ प्रथम गणधारू सुविचार घणसार सम विमल चित्त चारित्तसुंदरु । बहुलोय-संसय–तिमरु पूरु-सुरु पणमियपुरंदरु ॥ गामागरपुरपट्टणिहिं विहरंतउ गुणरासि । वीरजिणेसरसउं रहिय पावापुरि चउमासि
पंचमी भाषा ॥
॥५३॥
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कत्तिय अमावस वीरू जिणु, पुर पुरपरिसरट्ठिय गामि ते । बोहेवा दिवसरम दिउ, पेरिउ गोयमसामि ते तं प्रतिबोधि करेवि तहिं निसि रहियउ गणधारु ते । जां जोवइ तां गयणियले, सुरगण मिलिय अपारु ते तउ जा...ण [जाणे जिण?] खिव समउ चिंतउ गोयमसामि ते । जिणवरि किणि अवसरि अहह! हउ पेसिउ इणि गामि ते
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