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શ્રી ગુરુ ગૌતમસ્વામી ]
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त्रितीय भाषा ॥ जो नियसकति प्रमाणू ए अष्टापद तीरथ नामू ए । सो नस....केवलनाणू ए, निच्छइ होस्यइ एणी भवे इसउ अरथु वखाणी ए, देसण करि जं रहिय जिणु । सुरहं वयण तं जाणी ए, गोय[म]...त कंठि...ए अष्टापदि तिणि तालि ए, क्रमि क्रमि त्रिहुं पावडिय लगे । कोडिन्न-दिन्न-सेवाली ए, पण पण सय तावस चडि[ए]
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चिंतहिं किम चडेसी ए, एहु ज दीसइ थुलतणु चारण लवधि प्रमाणू ए, मुणि(वर चडि)उ गिरिसिहरे । तावस तिणिही ठाणू ए, ट्रगमग जोवंता रहिय दाहिण दिसि पयसेवी ए, भरहेसर कारणि भवणि । जिण चउ[वीस] [ठठेवी ए?]...चारि अट्ठ दस दुन्नि क्रमि तहिं वेसमणु करेवी ए, गोयम पुंडरियज्झयणु ।. तं पुण चित्त धरेवी ए, जंभग सुर वयरसामि-जिउ (२/१) वलि वलतउ गणहारू ए, तावस देषी इम भणए । मनवंच्छि आहारु ए, कहउ किसउ तुम्ह दीजिसिए ति मुणि भणइ अम्ह सामि ए, निगुरउ आगलि तप कियउ हिव पुणि तुम्हि गुरु पामी ए, षीर षांडु घृत परि गमए इकु पडिघउ गणधारी ए, षीर आणि आषीणि किय । मुनिमंडलि बइसारी ए, पूरी यात्रा पनर सय पंच सयह सुहज्झाणू ए, जिमतह जिमतह अम्रितरसो । साचउ सुगुरू प्रमाणू ए, कवल काटि (?) केवलि हूवए पंचसयहं पुण नाणू ए, समवसरण पेषतयहं । सेस सुणंत वषाणू ए, केवलसिरि सयंवर किय अधृति धरंतु मुणिंदू ए, केवलकारणि अतिघणउ । देइ उलंभउ जिणंदू ए, कणयदिटुंतु परिच्छवइ गोयम ! म करि प्रमादू ए, सुणि दुमपत्तय अज्झयणु । चिनि म धरिसि विषादू ए, अंते तुल्ला होइसहं वस्तुः नायनंदण नायनंदण पढम गणधार अष्टापदिहिं जिण नमवि दिक्ख देवि तापस जिमाडिय । सुहज्झाण उवएस करे खवगसेणि केवल पमाडिय ॥
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