________________
जैन- विभूतियाँ
76
दिगम्बर साधना भी की।" एक श्वेताम्बर जैन आचार्य का नग्न तांत्रिक साधना करने का साहस उनके क्रांतिद्रष्टा होने का पर्याप्त सबूत है।
आपके शासनकाल में तपस्या के भी अनेक कीर्तिमान स्थापित हुए। साध्वी राजकुमारी जी (नोहर) ने 14 वर्षों का मौन व्रत, मुनि वृद्धिचन्द जी ने गुणरत्न संवत्सर, मुनि सुखलाल जी ने भद्रोत्तर तप एवं साध्वी भूरा जी ने महा भद्रोत्तर तप किये। मुनि सुखलालजी ने 6 महीने का रोमांचकारी जल परिहार तप किया । श्राविका कलादेवी ने 121 दिन की तपस्या की एवं मनोहरी देवी आंचलिया ने 30 बार महीने - महीने की तपस्या की। संतों में चित्रकला, शिल्पकला, रंग-रोगन, सिलाई आदि का विकास हुआ। संघ में सूक्ष्म लिपि लेखन के कीर्तिमान स्थापित हुए । साहित्य सुरक्षा हेतु पेटियों एवं चश्मों, लेंस, जलघड़ी आदि आवश्यक वस्तुओं का निर्माण हुआ। आपके संरक्षण में साध - साध्वी शतावधानी एवं सहस्त्रावधनी हुए। संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी, तमिल, कन्नड़, बंगला आदि भाषाओं के प्रवक्ता, अध्येता एवं कवि हुए। आगमों का सम्पादन एवं समीक्षाएँ हुईं। आचार्य भिक्षु एवं जयाचार्य के साहित्य का सम्पादन प्रकाशन हुआ । मुमुक्षु बहनों के स्वाध्यायार्थ सं. 2005 में पारमार्थिक शिक्षण संस्था की स्थापना हुई। सं. 2052 की समग्र जैन श्रमण सूचि के अनुसार आपके अनुशासन में 146 संत एवं 545 सती साधनरत हैं।
आपके शासन काल में अंतरंग एवं बाह्य विरोध भी कम नहीं हुए । सं. 2012 में मुनि रंगलालजी प्रभृति 15 संत, 2030-32 में मुनि नगराज जी, मुनि महेन्द्र कुमार जी प्रभृति संत, सं. 2038 में मुनि धनराज जी, मुनि चन्दनमल जी, मुनि रूपचन्द जी प्रभृति संत संघ से अलग हुए। सं. 2006 में जयपुर में बाल दीक्षा विरोध, 2016 में कलकत्ता में मलमूत्र प्रकरण एवं सं. 2027 में रायपुर एवं सं. 2029 में चूरू में आप द्वारा रचित "अग्निपरीक्षा' को लेकर विरोध हुआ ।
इनके बावजूद आपका शासनकाल सफलताओं की एक लम्बी सूचि सँजोए है। धर्म संघ ने आपको युगप्रधान पद से विभूषित तो किया