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________________ जैन-विभूतियाँ 75 मुनि नथमल जी ने आगम ग्रन्थों का सम्पादन कर जैन धर्म की महती सेवा की है। वि.सं. 2005 में आपने अणुव्रत अभियान प्रारम्भ किया, जिसकी भारत के राजनेताओं ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। आपके शासनकाल में श्रमण संघ का विहार क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया। आपने श्रमण-श्रमणियों की लगभग 780 दीक्षाएँ सम्पन्न की। किसी भी जैनाचार्य ने सम्भवत: इतनी दीक्षाएँ नहीं दीं। यह एक कीर्तिमान है। आपने "समय-समणी'' दीक्षा प्रारम्भ कर सन्यास की नई श्रेणी का सूत्रपात किया। आचार्य तुलसी ने भारतव्यापी पदयात्रा की। सुदूर दक्षिण के कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल प्रदेशों में आचार्य के पाद विहार एवं एक लाख किलोमीटर की यात्रा का संघ में प्रथम अवसर था। साधु, साध्वियों के असम, सिक्किम, गोवा, कश्मीर, पांडिचेरी एवं विदेशों-नेपाल, भूटान विचरण का भी यह प्रथम अवसर था। सं. 2017 में 'नई मोड़' का आह्वान कर सामाजिक परिप्रेक्ष्य में पर्दा प्रथा, मृत्युभोज, रूढ़िरूप में मृतक के पीछे रोना, विधवाओं का काले वस्त्र पहनना आदि कुरीतियों के उन्मूलन में आप प्रेरणास्रोत बने। सं. 2028 में बीदासर में आपको संघ द्वारा 'युगप्रधान' आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया। सं. 2035 में आपने मुनि नथमलजी को युवाचार्य घोषित किया एवं 'महाप्रज्ञ' की पदवी से अलंकृत किया। आप द्वारा संस्थापित लाडनूं में जैन विश्वभारती एवं तुलसी आध्यात्म नीड़म समाज को युगों तक अध्यात्म पोषण देती रहेगी। आपके सान्निध्य में प्रेक्षाध्यान की अभिनव शुरुआत से साधना क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रान्ति हुई है। लाडनूं में सं. 2037 में समण-समणी दीक्षा' की क्रान्तिकारी शुरुआत से धर्म के विकास को नई दिशा और विदेशों में धर्म-प्रचार को नये आयाम मिले हैं। आपके शासन के 50 वर्ष पूरे होने पर लाडनूं में अमृत महोत्सव का अपूर्व कार्यक्रम हुआ। यौगिक क्रियाओं में आपकी रुचि शुरु से थी। 'आदमी की तलाश' ग्रंथ के लेखक श्री कन्हैयालाल फूलफगर के अनुसर "आचार्य तुलसी ने
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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