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________________ 74 जैन- विभूतियाँ 20. आचार्य तुलसी गणि (1914-1997) जन्म पिताश्री माताश्री दीक्षा आचार्य पद दिवंगत : लाडनूँ, 1914 : झूमरमल खटेड़ : बदनाजी (साध्वी ) : 1925 1936 : 1997, गंगाशहर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के नवम आचार्य तुलसीगणि ने अणुव्रत आन्दोलन का सूत्रपात कर भारत व्यापी ख्याति अर्जित की। आपका जन्म वि.सं. 1971 में लाडनूँ के ओसवाल वंशीय खटेड़ गोत्रीय सेठ श्री झूमरमलजी के घर में हुआ। पिता का साया अल्प वय में ही उठ गया। आपकी माता बदना जी बड़ी सरल हृदया थीं। वि.सं. 1982 में आप भगिनी लाडां जी के साथ आचार्य कालूगणि के हाथों दीक्षित हुए। इनके ज्येष्ठ भ्राता चम्पालाल जी पहले ही दीक्षित हो चुके थे। माता बदनाजी बाद में दीक्षित हुईं। ग्यारह वर्षीय संत तुलसी की कालूगणि के निजी संरक्षण में शिक्षा प्रारम्भ हुई। ग्यारहवें वर्ष में आपने बीस हजार पद्य प्रमाण श्लोक कंठस्थ कर अपनी मेधा से सबको चमत्कृत कर दिया। शुरू से ही कालूगणि ने संघ का दायित्व संभालने के लिए उन्हें तैयार करना प्रारम्भ कर दिया था । : तुलसी गणि ने 22 वर्ष की आयु में (वि.सं. 1993 ) आचार्य पदारूढ़ हो तेरापंथ धर्मसंघ का शासन भार संभाला । साध्वियों की शिक्षा का नया कीर्तिमान आपके शासनकाल की उपलब्धि है। इस दौरान पं. रघुनन्दनजी की उल्लेखनीय सेवाएँ संघ को उपलब्ध रहीं । आचार्यश्री कवि, साहित्यकार एवं चतुर शासन संचालक थे। आपने स्वयं न्याय एवं योग विषयक मौलिक रचनाएँ की हैं तथा आपके नेतृत्व में श्रमण संघ ने विपुल साहित्य सृजन किया है। आपके सान्निध्य में महाप्रज्ञ
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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