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________________ जैन-विभूतियाँ ''माता धनदेवी'' की आत्म समाधि में प्रेरक बनी। ''माताजी धन देवी'' तदनन्तर हम्पी जो कभी रामायणकालीन बाली-सुग्रीव की राजधानी किष्किंधा नगरी रही थी एवं जहाँ सहजानन्दजी ने अपने आराध्य श्रीमद् राजचन्द्र की स्मृति में आश्रम की स्थापना की, उस आश्रम की अधिकारिणी बनी। कहते हैं सन् 1961 में बोरड़ी नगर में सीमंधर स्वामी के आदेश से दादा जिनदत्त सूरि ने ''सहजानन्दजी'' को 'युग प्रधान" पद से अलंकृत किया। सन् 1970 में सहजानन्दजी ने दक्षिणी भारत की यात्रा की। इस बीच उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया। उन्हें भगन्दर ने परेशान कर दिया। हम्पी में समाधि मे ही 57 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ। उनके रचित ग्रंथों में उल्लेखनीय है-"अनुभूति की आवाज, आनन्दधन चौबीसी, समयसार, आत्मसिद्धि शास्त्र, सहजानन्द सुधा, तत्त्व विज्ञान आदि। उनके पत्र-संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं- "सहजानन्द विलास'' एवं ''पत्र सुधा'' | न PANCE
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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