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________________ जैन - विभूतियाँ 19. योगीराज श्री सहजानन्द घन (1913 - 1970 ) 71 जन्म : डुमरा ग्राम (कच्छ), 1913 पिताश्री : नागजी परमार माताश्री : नयना देवी दीक्षा : 1934 दिवंगति : हम्पी (कर्नाटक), 1970 कुछ साधु एवं साधक आत्माभिमुख होकर परम्परा एवं साम्प्रदायिक बंधनों की केंचुली उतारकर अवधूत योगी बन जाते हैं। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे एकल बिहारी स्वच्छंद प्रक्रिया से गुजरकर उन्मुक्त पंछी की तरह साधनाकाश की अनन्त गहराई नापते हुए परम पद के लिए सचेष्ट रहते हैं। ऐसे ही आध्यात्म योगी सहजानंदघन थे । कच्छ प्रांत के डुमरा ग्राम में ओसवाल बीसा परमार गोत्रीय श्रावक नागजी भाई निवास करते थे। उनकी धर्मपत्नि नयना देवी की कुक्षि से सन् 1913 में मूल नक्षत्रीय एक पुत्र का जन्म हुआ। नामकरण हुआमूलजी। बालक के धार्मिक संस्कार बचपन से उजागर होने लगे। उसने यति रविसागरजी से धर्म शिक्षा ग्रहण की। मात्र 12 वर्ष की अल्पवय में उनकी सगाई बहन मेघ बाई की नणद से कर दी गई। मूलजी के मन में वैराग्य के बीज अंकुरित होने लगे थे । इसलिए उन्होंने विवाह करने से साफ इन्कार कर दिया। वे माता-पिता को आर्थिक कठिनाइयों से छुड़ाने के लिए जीविकोपार्जन हेतु पढ़ाई को तिलांजलि देकर बम्बई चले गए। वहाँ भरत बाजार में पुनसी मोनसी की पेढ़ी में गोदाम का कार्यभार सम्भालने लगे। इसी दरम्यान एक नारी के क्रोधानल को देखकर मूलजी भाई के मन में एकांत ध्यान एवं कायोत्सर्ग करने की प्रेरणा हुई। इस आत्यंतिक कदम से सभी सहम उठे । घर वालों के अनुनय-विनय से वे खरतरगच्छीय गणिवर्य श्री रत्न मुनिजी के हाथों सन् 1934 में दीक्षित
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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