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जैन- विभूतियाँ
शास्त्रों का वृहद् अध्ययन होने से आपकी वाणी श्रोताओं को मुग्ध कर लेती थी । तपा गच्छ के आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी ने आपको "जैन कोकिला' सम्बोधन दिया। आपने निरंतर भ्रमण कर धर्म की प्रभावना में अभूतपूर्व योग दिया। लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए आपका सान्निध्य सदा उपलब्ध रहता था। अमरावती एवं जयपुर में आपके सद्प्रयासों से सुवर्ण सेवा फण्ड स्थापित हुए जिनसे गरीब महिलाओं को अवदान दिया जाता है। इसी हेतु दिल्ली में श्री कल्याण केन्द्र की स्थापना करवाई। रतलाम में सुख सागर जैन गुरूकुल स्थापित करवाने का श्रेय भी आपको है । आपके हाथों पचासों दीक्षाऐं सम्पन्न हुई । आपने विपुल भजन साहित्य की रचना की । अंतिम समय में आपने साध्वी सज्जन श्री जी को प्रवर्तिनी पद देकर सन् 1980 के 18 अप्रैल की दोपहर महाप्रयाण किया ।
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