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जैन-विभूतियाँ 17. आचार्य हस्तीमल (1910-1991)
जन्म : पीपाड़, 1910 पिताश्री : केवलचन्द बोहरा माताश्री : रूपादेवी दीक्षा : 1920 आचार्य पद : 1929 दिवंगति : 1991
आध्यात्मिक जगत् को अपनी प्रभा से आलोकित करने वाले आत्म साधक आचार्य हस्तीमलजी का जन्म सं. 1967 में निम्बाज ठिकाने के पीपाड़ गाँव में बोहरा कुल श्रेष्ठि केवलचन्द जी के घर हुआ। आपने आधुनिकता एवं सुविधाओं की प्रचण्ड आँधी में भी उत्कृष्ट साध्वाचार का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। गर्भ से ही आपका जीवन विपदाओं एवं परिषहों के तूफान झेलने का आदी हो गया। जब वे गर्भ में ही थे पिता काल कवलित हो गये। सं. 1974 की महामारी प्लेग ने नाना गिरधारीलालजी मुणोत के समस्त परिवार को ही समाप्त कर दिया। इस वज्राघात से उबरे ही न थे कि तीव्र ज्वर से पीड़ित हो दादी चल बसीं। इस तरह आश्रयहीन बालक का माँ रूपा देवी की वात्सल्यमयी गोद ही सहारा बनी। पिता के अवसान से व्यवसाय चौपट हो गया, कर्ज डूब गया। पर इन विषम परिस्थितियों में भी माँ ने हिम्मत न हारी। वैराग्य के अंकुर माँ और बालक दोनों के ही हृदय में पनप चुके थे। आचार्य शोभाचन्द्र का पधारना हुआ। वे बालक की कुशाग्र बुद्धि वाक्पटुता एवं विनयशीलता देखकर अभिभूत हो गये। तत्काल अजमेर के रत्नवंशीय श्रावकों ने माता-पुत्र के शिक्षण-दीक्षण का प्रबंध किया। संस्कृत के विद्वान् पं. रामचन्द्र ने सं. 1976 के अजमेर चातुर्मास तक बालक हस्ती को प्रवज्या एवं श्रमणशील जीवन के लिए आवश्यक जैन शास्त्रों का