SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 58 जैन-विभूतियाँ कान्तिविजयजी ने वि.सं. 1965 माघ बदी 5 (गुजराती) के दिन बालक को दीक्षा देकर गुरु चतुरविजयजी का शिष्य बना दिया। इनका नाम मुनि पुण्यविजय रखा गया। माँ माणेक बहन मात्र दो दिनों के बाद स्वयं भी महावीर-शासन में दीक्षित होकर साध्वी रतनश्री बन गईं। प्रगुरु मुनिश्री कांतिविजयजी और गुरु मुनिश्री चतुरविजयजी ने बाल मुनि पुण्यविजय को शास्त्रज्ञान पं. सुखलालजी जैसे विद्वानों से दिलाया। शास्त्रों के सम्पादन-संशोधन में रुचि होने के कारण बाल मुनि पुण्यविजय की दिशा बदल गई। पाटण में प्रगुरु ने वृद्धावस्था के कारण 10 चातुर्मास किये। मुनि पुण्य विजयजी ने पाटण के समस्त ज्ञानभण्डारों का एकीकरण कर 'हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर' की स्थापना की और वहां सम्पादन-संशोधन का कार्य हो सके उसकी समुचित व्यवस्था कराई। डॉ. भोगीलाल सांडेसरा, श्री जगदीशचन्द्र जैन, विक्टोरिया म्यूजियम के डाइरेक्टर श्री शांतिलाल छगनलाल उपाध्याय जैसे विद्वान आपश्री के ही शिष्य थे। अनेक विदेशी विद्वानों, यथा-डॉ. बेंडर, डॉ. आल्सडोर्फ आदि को सम्पादन व संशोधन कार्यों में मार्ग निर्देशन दिया। वि.सं. 2017 में श्री महावीर जैन विद्यालय में आगम-साहित्य के संशोधन एवं सम्पादन का काम आपश्री की प्रेरणा से शुरु हुआ और कई आगम ग्रन्थ प्रकाशित कराये। मुनिश्री ने अनवरत प्रयत्न से लींबड़ी, पाटण, खंभात, बड़ोदरा, भावनगर, पालीताणा, अहमदाबाद एवं सौराष्ट्र व राजस्थान के अनेक ग्रंथ भंडारों की खोज कर उन्हें व्यवस्थित किया एवं उपलब्ध पांडुलिपियों के केटेलॉग तैयार किए। मुनि पुण्यविजयजी का मुख्य कार्य जैसलमेर के ज्ञान भण्डारों का जीर्णोद्धार, संशोधन, सम्पादन और व्यवस्था करना था। राजस्थान की भयंकर गर्मी में वि.सं. 2006-07 में डेढ़ वर्ष जैसलमेर प्रवास कर आपने यह अद्वितीय कार्य सम्पन्न किया, जिसे युगों-युगों तक याद किया जायेगा। मृत प्राय: ताड़पत्रीय एवं अन्य हस्तलिखित ग्रन्थों को सन्जीवनी मिली। वे आगामी सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रह सकेंगे। समस्त ज्ञान
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy