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________________ 59 जैन-विभूतियाँ भण्डारों में उपलब्ध ग्रंथों की सूची बनाई। इस महान ज्ञान-यज्ञ की आहूति में सेठ कस्तूर भाई लाल भाई एवं श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेंस, बम्बई का अपूर्व सहयोग था। पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व वल्लभी में हुई देवर्धिगणी क्षमाश्रमण के मार्गदर्शन में आगम-सूत्रों की वाचना के बाद नई वाचना एवं टीका के साथ आगम सम्पादन का श्रेय मुनिजी को ही है। उनके द्वारा सम्पादित 'नंदी सूत्र'' की चूर्णि और टीका विद्वानों द्वारा बहुत प्रशंसित हुए। मुनिजी समुदाय/गच्छ भेद से ऊपर थे। वि.सं. 2007 में बीकानेर चातुर्मास में खतरगच्छीय साधु मुनि विनयसागरजी को अपने पास रखकर उनको विद्वान-आगमज्ञाता बनाया। आपको पद का किंचित मात्र भी लोभ नहीं था। वि.सं. 2010 में बम्बई संघ और जैनाचार्य श्री विजयसमुद्रसूरि जी ने आपसे आचार्य पद स्वीकार करने का बहुत आग्रह किया, किंतु आपने स्वीकार नहीं किया। फिर भी बड़ौदा संघ ने आपको 'आगम प्रभाकर' पद से सम्मानित किया। वि.सं. 2029 में आचार्यश्री विजय समुद्रसूरिजी ने 'श्रुतशील वारिधि' पद से अलंकृत किया। अमेरिकन औरियंटल सोसाइटी ने अपनी मानद सदस्यता प्रदान कर मुनिजी का सम्मान किया। आचार्यश्री विजयवल्लभसूरिजी की जन्म शताब्दी महोत्सव की सार्थक योजना बनाने के लिए बम्बई संघ की विनती पर आपको वि.सं. 2024 व 2026 के चातुर्मास बम्बई में ही करने पड़े। शताब्दी महोत्सव सम्पन्न होने के बाद आपकी अहमदाबाद की तरफ विहार करने की इच्छा थी-किंतु भवितव्यता कुछ और थी। यकायक तबीयत बिगड़ गई, बम्बई में ही वि.सं. 2027 जेठबदी 6 (गुजराती) ता. 14 जून, 1971 में सोमवार को रात्रि के 8.11 बजे आप स्वर्ग सिधार गये। आपने अपनी दीक्षा-पर्याय के 62 चातुर्मास विभिन्न नगरों में विशेषकर गुजरात क्षेत्र में बिताए। राजस्थान में जैसलमेर और बीकानेर में दो ही चातुर्मास किये। आपने कुल 7 आगम ग्रन्थों एवं 37 विभिन्न ग्रन्थों का संपादन-प्रकाशन किया जिनकी सूची इस प्रकार है
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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