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जैन- विभूतियाँ
उन्हें 'श्रमण-सूर्य' विरुद से विभूषित किया। मुनिश्री की शिष्य - प्रशिष्य श्रृंखला - सूचि बहुत लम्बी है । उसी की मणियाँ हैं- श्रमण संघीय सलाहकार उप-प्रवर्तक मुनि सुकनमलजी, कवि अमरमुनिजी, प्रवर्त्तक मुनि रूपचन्दजी आदि ।
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सन् 1984 में जैतारण प्रवास में आपने स्वेच्छापूर्वक चतुर्विध संघ की साक्षी से संथारा ग्रहण किया एवं मात्र दो घंटे बाद स्वर्गारोहण किया। 'जैतारण' जैन समाज का पावन तीर्थ स्थल बन गया है। सन् 1987 में मुनिश्री की स्मृति को चिर स्मरणीय बनाने हेतु समाज ने "श्री मरुधर केसरी स्थानकवासी जैन यादगार समिति ट्रस्ट' की स्थापना की। वर्तमान में यह ट्रस्ट धर्म एवं समाज के विकासार्थ अनेक योजनाएँ क्रियान्वित कर रहा है।