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________________ जैन - विभूतियाँ 14. मरुधर केसरी मुनिश्री मिश्रीमल मधुकर (1891-1984) 53 जन्म : पाली - मारवाड़, 1891 पिताश्री : शेषमल मेहता ( सोलंकी ) माताश्री केसरकुंवर बाई दीक्षा : सोजत, 1918 दिवंगति : जैतारण, 1984 'मरुधर केसरी' के विरुद से विभूषित महाश्रमण मिश्रीमलजी मधुकर का जन्म सन् 1891 ( श्रावण शुक्ला चतुर्दशी विक्रम संवत् 1948) में राजस्थान के पाली शहर में ओसवाल श्रेष्ठ शेषमलजी सोलंकी मेहता के घर धर्मपरायणा माता श्रीमती केसर कंवर की रत्न कुक्षि से हुआ । ' बड़े होकर बालक की रूचियाँ शास्त्राध्ययन से परिष्कृत हुई । इक्कीस वर्ष की वय में वैराग्य का अंकुर फूटा। सन् 1918 में परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री बुधमलजी महाराज सा के करकमलों से सोजत सिटी में अक्षय तृतीया के पावन दिन मिश्रीमलजी ने जैन स्थानकवासी सम्प्रदाय में भगवती दीक्षा अंगीकार की । वे तत्काल जिनागम के अध्ययन में जुट गए। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं एवं गणित, व्याकरण, साहित्य, छन्द, अलंकार आदि विषयों में महारत हासिल की। सन् 1918 में ही गुरु वियोगोपरांत मुनि मिश्रीलाल अपने धार्मिक एवं सामाजिक दायित्वों को निभाने के लिए सक्रिय हो गए। आपकी प्रवचनशैली प्रभावकारी थी । जनमेदिनी आपके प्रवचन सुनने के लिए उमड़ पड़ती थी । वे भारतीय संस्कृति के दैदिप्यमान प्रकाश स्तम्भ थे। उन्होंने पाद विहार कर धर्म की प्रभावना तो की ही, साथ ही सामाजिक विकास एवं आत्मोन्नति के लिए विभिन्न रचनात्मक प्रवृत्तियों की आधारशिला रखी। उनकी सत्प्रेरणा एवं उपदेश से अनेक
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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