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जैन-विभूतियाँ गुरुदेव ने विशाल मुमुक्षु संघ सहित संवत् 2013 से सं. 2020 के बीच पूर्व, उत्तर एवं दक्षिण भारत के सकल जैन तीर्थों की यात्रा की। सं. 2013 में गुरुदेव ने लगभग 2000 भक्तों सहित श्री सम्मेद शिखर की तीर्थ यात्रा सम्पन्न की। सं. 2015 में सात सौ भक्तों सहित दक्षिण के कुन्दाद्रि मूडबिद्री, श्रवण बेल गोला, पोन्नूर आदि तीर्थों की मंगल यात्रा की। सं. 2020 में दूसरी बार दक्षिणी भारत एवं सं. 2023 में दूसरी बार सम्मेद शिखर की तर्थयात्राएँ सम्पन्न की। अनेक स्थानों पर मुमुक्षु मण्डलों की स्थापना हुई। नैरोबी में गुरुदेव के प्रयास से सनातन सत्य जैनधर्म का प्रचार हुआ। आत्म साक्षात्कार की झलक सम्प्रेषित करते हुए कानजी स्वामी ने उद्घोषणा की- 'बिना स्वानुभूति के सम्यग्दर्शन का प्रारम्भ ही नहीं होता।' रूढ़िग्रस्त सम्प्रदायवाद स्वामी जी की इस चुनौती का उत्तर न दे सका। अन्तिम क्षणों तक स्वानुभव-समृद्ध ज्ञान पीयूष जन-जन में वितरित करते हुए 91 वर्ष की उम्र में सं. 2037 (सन् 1980) में इस क्रान्तिद्रष्टा संत ने महाप्रयाण किया।
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