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जैन-विभूतियाँ
49 पुरातत्त्व विषयक अनेक हस्तलिखित व मुद्रित ग्रंथों का विशाल संग्रह किया एवं सन् 1959 में जोधपुर में एक नवीन भवन निर्माण करवाया। देश भर में यह
संस्थान भारत विद्या एवं पुरातत्त्व का
विशिष्ट केन्द्र बन गया। मुनिजी सन
1967 तक इस केन्द्र के संचालक रहे। तत्पश्चात्
मुनिजी पुन: आचार्य हरिभद्रसूरि की
साधना-स्थली चित्तौड़ चले आए। उन्होंने
यहाँ दानवीर भामाशाह की स्मृति में
'भामाशा भारतीय भवन' के निर्माण
करवाया। इधर मुनिजी 80 वर्षों के हो चले थे। शारीरिक श्रम से कमजोरी रहने लगी थी एवं आँखों की रोशनी भी मंद पड़ गई थी। फिर भी अंत तक उन्होंने भारतीय पुरातत्त्व जैन दर्शन एवं चित्तौड़ के प्राचीन गौरव के अध्ययन को अपनी उपासना का अंग बनाए रखा। सन् 1976 में चित्तौड़ में ही उनका देहावसान हुआ।
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