SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन - विभूतियाँ गया । महेसाणा चातुर्मास में उनका परिचय प्रसिद्ध जैनाचार्य कांतिविजयजी एवं उनके प्रशिष्य पुण्यविजय जी से हुआ । सबों की प्रेरणा एवं सक्रिय सहयोग से ‘‘श्री कांति विजय जैन इतिहास ग्रंथमाला' का प्रादुर्भाव हुआ, जिसके अंतर्गत अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन सम्भव हो सका। जिनविजय जी के शोध-प्रबंध गुजराती पत्रिकाओं, यथा - जैन हितैशी एवं मुंबई समाचार में प्रकाशित होने लगे। पाटण ग्रंथ भंडार से प्राप्त "प्रसिद्ध वैयाकरण शाकटायन" संबंधी विस्तृत आलेख और भंडार में प्राप्त ग्रंथों की विवरणिका प्रकाशित होने से जिनविजयजी ने हिन्दी जगत में ख्याति अर्जित की। बड़ोदरा प्रवास में उन्होंने 'कुमारपालप्रतिबोध' नामक वृहद् ग्रंथ का सम्पादन / प्रकाशन किया । 47 मुंबई प्रवास में मुनिश्री की प्रेरणा से पूना में भंडारकर प्राच्य विद्या संशोधन मन्दिर की स्थापना हुई। मुनि जिनविजयजी पूना रहने लगे । यहाँ उन्होंने ‘जैन साहित्य संशोधक समिति' की स्थापना की एवं "जैन साहित्य संशोधक' नामक शोध पत्रिका एवं ग्रंथमाला का प्रकाशन शुरु किया । यहाँ उनका परिचय राष्ट्रीय नेता लोकमान्य तिलक एवं प्रसिद्ध क्रांतिकारी अर्जुनलाल सेठी से हुआ। उनके प्रभाव में मुनिजी के विचारों ने मोड़ लिया एवं मूर्तिपूजक साधुचर्या खटकने लगी। उन्होंने साधु जीवन की बंधन - कारा तोड़ने का संकल्प जाहिर किया। तभी महात्मा गाँधी ने उन्हें अहमदाबाद बुला लिया एवं विद्यापीठ में पुरातत्त्व मंदिर की स्थापना कर उन्हें आचार्य पद से विभूषित किया । यह मुनि जिनविजयजी के जीवन का नया मोड़ था । लगभग आठ वर्ष के आचार्यकाल के दौरान उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण गंथों का प्रकाशन किया। गाँधीजी के प्रोत्साहन एवं प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् हरमन जेकोबी के प्रेम भरे आग्रह से जिनविजयजी सन् 1928 में जर्मनी पधारे। वहाँ अपने डेढ़ वर्ष के प्रवास काल में उन्होंने बान, हैम्वर्ग एवं लिप जिंग विश्वविद्यालयों के प्राच्य विद्या विशारदों से महत्त्वपूर्ण विचारों का आदान-प्रदान किया । बर्लिन में भारत - जर्मन मित्रता के विकासार्थ ‘हिन्दुस्तान हाउस' की स्थापना की जो कालांतर में आपसी सम्पर्क का उत्तम केन्द्र साबित हुआ ।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy