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________________ जैन-विभूतियाँ 45 12. पुरातत्त्वाचार्य श्री जिनविजय (1888-1976) जन्म : रुपाहेली ग्राम (भीलवाड़ा) 1888 पिताश्री : बिरधीसिंह परमार माताश्री : राजकुंवर उपाधि : पद्मश्री सृजन : सिंघी जैन ग्रंथमाला दिवंगति : अहमदाबाद, 1976 ___पुरातत्त्वविद् एवं प्राच्य विद्या प्रेमियों में एक विश्व विश्रुत विराट विभूति थे-मुनि जिनविजय जी। भारतीय प्राचीन वांगमय के शोध सम्पादन एवं प्रकाशन में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा। विलुप्त ग्रंथ भंडारों को खोजना, उनमें धूल चाट रहे ताड़पत्रीय/हस्तलिखित ग्रंथों को सूचिबद्ध करना, अपने निर्देशन में उन्हें व्याख्यायित करना एवं प्रामाणिकता से सम्पादित कर प्रकाशित करना उन्होंने अपना ध्येय बना लिया। सरस्वती के इस वरद् पुत्र ने भारतीय दर्शन एवं साहित्य को विदेशी विद्वानों तक पहुँचाकर उनकी अपरिमित्त श्रद्धा अर्जित की। समूचा जैन समाज ऐसे महान् मनीषी को पाकर धन्य हुआ। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के रूपाहेली ग्राम में सन् 1888 में परमार वंशीय क्षत्रिय कुल के श्री बिरधीसिंह की सहधर्मिणी श्रीमती राजकुँवर की कुक्षि से एक बालक ने जन्म लिया। नामकरण हुआकिशनसिंह। इनके पूर्वजों ने सन् 1857 में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में खुलकर भाग लिया था, सरकार ने इनकी जायदादें जब्त कर ली थी एवं कई एक परिवारजनों को मार डाला गया। मुनिजी के पितामह कई वर्षों के अज्ञातवास के बाद रूपाहेली ग्राम लौटे। ग्राम के ठाकुर के ढ़ाढ़स बँधाने पर उन्होंने अपनी नई जिन्दगी शुरु की। मुनिजी के पिता ने जंगल विभाग में नौकरी कर ली। वृद्धावस्था
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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