________________
जैन-विभूतियाँ
11. आगमोद्धारक आचार्य घासीलाल
(1884-1973)
Gra
जन्म
पिताश्री
माताश्री
: बनोल (मेवाड़),
: कनीरामजी
: विमला बाई
1884
1
दीक्षा
: 1901, जसवंतगढ़
पद / उपाधि : आचार्य, जैन दिवाकर (करांची) दिवंगत
: अहमदाबाद,
1973
समस्त जैनागमों एवं प्राचीनतम शास्त्रों का संस्कृत टीका सहित हिन्दी व गुजराती भाषाओं में रूपान्तरण कर प्रकाशित करने वाले साहित्य महारथी स्थानकवासी जैन समाज के अत्यंत उच्च कोटि के विद्वान् थे साहित्य मनीषी श्री घासीलालजी महाराज । इतने विशाल एवं उपयोगी साहित्य का निर्माण कर आपने ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य किया ।
आपका जन्म राजपूतों की वीरभूमि मेवाड़ के ग्राम बनोल में सन् 1884 में खेतिहर कनीरामजी के घर माता विमला बाई की कुक्षि से हुआ। दादा परसरामजी की मिल्कीयत में अच्छी खासी जमीन थी । अत: सुखी परिवार था । हृदय के सरल थे। पवित्र आचार-विचार एवं धर्म परायणता के संस्कार बालक को विरासत में मिले। बालक का रंग उजला एवं मुख तेजस्वी था । ज्योतिषियों ने कुंडली देखकर बालक के उज्ज्वल भविष्य की भविष्यवाणियाँ की। माता-पिता ने नामकरण किया घासीराम ।
वे कभी पाठशाला नहीं गए। उनका शिक्षण प्रकृति की प्रयोगशाला में ही हुआ। प्रतिभाशाली तो वे थे ही। सहिष्णुता, उत्साह, संतोष, अनासक्ति, निर्भयता, निष्कपटता, स्वावलम्बन आदि नैसर्गिक गुणों की बदौलत बालक का विकास द्रुत गति से हुआ । पूर्व संस्कारों से बालक